वाराणसी. रामानंदाचार्य की 716वीं जयंती पर रविवार को शहर में निकली साधु-संतों की भव्य शोभा यात्रा। माघ कृष्ण सप्तमी को मनायी जाती है श्री राम भक्ति परंपरा के सर्वमान्य आचार्य आद्य जगतगुरु श्री रामानंदाचार्य जी की जयंती। इसकी शुरूआत रविवार सुबह श्रीरामानंदाचार्य के प्रतिमा पूजन से हुई।
दशाश्वमेध घाट पर हुआ अर्चन-वंदन
दशाश्वमेध घाट पर काशी के विभिन्न मठों एवं संस्थाओं से आए संत, महंत, वैदिक विद्वान, ब्राह्मण बटुकों ने आद्य जगतगुरु रामानंदाचार्य जी का मंत्रोच्चार के साथ पूजन-अर्चन-वंदन किया। इसके बाद भव्य शोभायात्रा निकली। इसका नेतृत्व कर रहे थे श्रीविद्या मठ के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के प्रतिनिधि भूत स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद। स्वामी जी ने सर्वप्रथम श्री रामानंदाचार्य की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। फिर वैष्णव विरक्त संत समाज के सभी संत-महात्मा व वरिष्ठ नागरिकों ने भी स्वामी जी के श्री चरणों में पुष्पांजलि अर्पित किया। फिर संत समाज के महामंत्री सर्वेश्वर शरण ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का माल्यार्पण कर स्वागत किया।
दशाश्वमेध से चौकाघाट तक निकली शोभायात्रा
दशाश्वमेध घाट पर पूजन-अर्चन के बाद निकली शोभा यात्रा। इसमें बैंड बाजा, घोड़ा-बग्घी सभी कुछ था। साधु-संत और बटुक तथा नागरिक जन हरिनाम संकीर्तन करते चल रहे थे। भव्य शोभा यात्रा का दृश्य अनुपम था। यात्रा शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए चौकाघाट स्थित सिद्धकरण हनुमान मंदिर परिसर पहुंच कर सभा में तब्दील हो गई। रास्ते भर सनातन हिंदू धर्मावलंबी जनता ने भी स्वामी श्री के श्रीचरणों में पुष्पांजलि समर्पित किया। शोभायात्रा में विविध झांकियां भी थीं। इन झांकियों में सनातन हिंदू धर्म के देवी-देवताओं के विविध स्वरूप धारण किए बालक-बालिकाएं बग्घियों पर विराजमान थे।
रामानंदाचार्य का ज्ञान दर्शन आज ज्यादा प्रासंगिक
संत समागम के अध्यक्ष रामशरण दास ने कहा, स्वामी रामानंदाचार्य न केवल राम भक्ति के संवाहक थे अपितु समस्त सनातन मानव समाज के लिए 13वीं सदी में आध्यात्मिक ऊर्जा, ज्ञान,दर्शन, विज्ञान एवं चमत्कारिक कला से समाज को ओत-प्रोत किया वह आज भी उतना ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक है। उनका ज्ञानदर्शन जो समस्त मानव समाज को इह लोक से लेकर आध्यात्मिक जीवन में भी गंगा प्रवाह की तरह है जो समस्त कलुष का प्रक्षालन कर ईश्वर तक जीव को पहुंचा देता है।
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