इस परिसर को 1991 से पहले हिदुओ का पूजा स्थल घोषित किया जा चुका है बता दें कि पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने बहस पूरी कर ली थी। उन्होंने अपनी दलील में वक्फ असेट्स मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया की बेबसाइड पर उपलब्ध विवरण का हवाला देते हुए कहा था कि ज्ञानवापी प्रापर्टी के वक्फ का नोटिफिकेशन, वक्फ रजिस्ट्रेशन तिथि, वक्फ निर्माण की तिथि, प्रापर्टी की खाता, खसरा, पट्टा, प्लाट नंबर सभी निल दिखाया गया है और प्रापर्टी शहर में होने के बावजूद मंडुआडीह ग्रामीण एरिया में दर्ज बताया गया है। जिस स्थान को विशेष उपासना स्थल कानून 1991 बनने से पहले हिदुओ का पूजा स्थल घोषित कर दिया गया उस स्थान पर यह कानून नहीं लागू होता है। धर्मिक स्वरूप के मुद्दे पर कहा कि वेद,शास्त्र,उपनिषद,स्मृति,पुराण से साबित है कि पूरी प्रॉपर्टी मन्दिर की है जबरदस्ती घुस आने से नमाज पढ़ लेने से मस्जिद की सम्पत्ति नही हो जाती है। कहा कि हमारे अधिकार का अतिक्रमण किया गया 1993 से पूर्व ब्यास जी तहखाने में और जगह जगह पर पूजा की जाती रही और उसे बैरिकेटिंग कर जबरन रोक दिया गया। विश्वनाथ मंदिर एक्ट के सेक्सन 5 के तहत यह प्रापर्टी देवता में निहित हो गई तब विशेष धर्म उपासना स्थल कानून लागू नही हो सकता। दलील में कहा कि ऑर्डर 7 रूल 11 के आवेदन में जो बात कही गई है उसी पर कोर्ट विचार करेगी इसके इतर विपक्षी जो भी बात कहेंगे उस पर विचार का कोई औचित्य नहीं है। जिन स्थलों पर पूजा करने का अधिकार विशेष धर्म उपासना स्थल एक्ट 1991 आने से पहले पूजा का अधिकार प्राप्त था उन स्थलों पर यह एक्ट प्रभावी नहीं है।.
एक नए मुकदमें की सुनवाई सिविल जज की अदालत में ज्ञानवापी प्रकरण में आज 18 जुलाई 2022 को सिविल जज (सीनियर डिविजन) की अदालत में दाखिल हुआ एक और मुकदमा। यह मुकदमा भगवान “अविमुक्तेश्वर विराजमान”के नाम से दाखिल किया गया है। इस पर दोपहर 2:00 बजे सिविल जज सीनियर डिवीजन की कोर्ट में होगी मुकदमे की सुनवाई।