2018 में डिप्टी लाइब्रेरियन पद पर प्रोन्नत हुए थे डॉ वीरेंद्र मिश्र जानकारी के अनुसार डॉ वीरेंद्र मिश्र को विश्वविद्यालय कार्यपरिषद ने 26 नवंबर, 2018 को डिप्टी लाइब्रेरियन पद पर प्रोन्निति देन के विश्वविद्यालय प्रशासन के प्रस्ताव पर मुहर लगाई थी।
विश्वविद्यालय सूत्रों के मुताबिक डॉ. वीरेंद्र मिश्र पर इससे पहले दो बार फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सहायक लाइब्रेरियन से डिप्टी लाइब्रेरियन पद पर प्रोन्नति का आरोप लग चुका है। उसके बाद तीसरे प्रयास में मिली प्रोन्नति के बाद शक होने पर सेंट्रल लाइब्रेरी के ही एक अधिकारी ने आरटीआई से सूचना मांगी तो सारे खेल का भंडाफोड़ हुआ। इसके बाद बीएचयू प्रशासन ने प्रो. मल्लिकार्जुन जोशी की अध्यक्षता में जांच समिति का गठन किया जिसमें शिकायत की पुष्टि हुई। पता चला कि जिन फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से डॉ मिश्र ने पूर्व में दो बार पदोन्नति का दावा किया था उन्ही दस्तावेजों के सहारे उन्हे तीसरी बार मकसद में सफलता मिली। जांच में हकीकत सामने आने पर एपीआई अंकों को घटाने और पदावनत करने की अनुंशसा की गई। दरअसल डॉ मिश्र के पूर्व के फर्जीवाडे़ की जांच भी प्रो जोशी ने ही की थी।
प्रो जोशी के ही नेतृत्व में गठित दूसरी जांच समित ने किया खुलासा विश्वविद्यालय के भरोसेमंद सूत्रों की मानें तो पुस्तकालय विज्ञान विभाग के एक प्रोफेसर और तत्कालीन लाइब्रेरी प्रभारी के स्तर से हुई या की गई गड़बड़ी पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रो जोशी के नेतृत्व में ही नई जांच समिति गठित की। इस समिति को प्रो जोशी की पुरानी रिपोर्ट की समीक्षा करने का काम सौपा गया। इस पर जांच समिति ने एक बार फिर से डॉ मिश्र के दस्तावेजों की जांच कर प्रमोशन को फर्जी करार दिया। हालांकि इस बीच डॉ मिश्र सेवानिवृत्त हो गए।
9 लाख की होगी वसूली
विश्वविद्यालय कार्यपरिषद की मंजूरी के चार साल बाद इस मामले की जानकारी जब वाइसचांसलर को हुई तो उन्होंने डॉ. मिश्र की प्रोन्नति पर तत्काल रोक लगा दी। साथ ही फर्जीवाड़े से प्राप्त प्रोन्नति के बाद आहरित वेतन भत्ते आदि के 8 लाख 87 हजार 647 रुपये वसूलने के आदेश दिए। माना जा रहा है कि यह वसूली डॉ मिश्र के ग्रेच्युटी में से काट कर की जाएगी।