केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि देश भर में हिंदी और अन्य स्थानीय भाषाओं के बीच कोई संघर्ष नहीं है। उन्हें भी गुजराती से ज्यादा हिंदी पसंद है। उन्होंने कहा कि वीर सावरकर नहीं होते तो आज हम अंग्रेजी ही पढ़ रहे होते। सावरकर ने ही हिंदी शब्दकोश बनाया था, अंग्रेजी हम पर थोपी गई थी।
राजभाषा सम्मेलन में बोले अमित शाह- मुझे गुजराती से ज्यादा हिंदी पसंद है
लोकतंत्र राष्ट्रभाषा से ही सफल हो सकता है: अमित शाह
अमित शाह ने कहा कि हमें स्वराज तो मिल गया, लेकिन स्वदेशी और स्वभाषा पीछे छूट गया। हिंदी भाषा को लेकर विवाद पैदा करने की कोशिश की गई थी, लेकिन वह समय अब समाप्त हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गौरव के साथ हमारी भाषाओं को दुनिया भर में प्रतिस्थापित करने का काम किया गया है। 2014 के बाद मोदी जी ने पहली बार मेक इन इंडिया और अब पहली बार स्वदेशी की बात करके, स्वदेशी को फिर से हमारा लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ रहे हैं।
हिंदी के उन्नयन के लिए काशी से शुरुआत हुई। पहली हिंदी पत्रिका काशी से ही शुरू हुई। मालवीय ने हिंदी में बिना चिंता के पढ़ाई की। गृहमंत्री ने कहा कि तुलसीदास को कैसे भूल सकते हैं। अगर उन्होंने राम चरित मानस नहीं लिखी होती तो आज रामायण लोग भूल जाते। अनेक हिंदी के विद्वानों ने यहीं से भाषा को आगे बढ़ाया।