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यहां अंग्रेजों ने दी थी क्रांतिकारियों को फांसी तो इस राजा ने अंग्रेजों को किया था कुएं में दफन

यह ऐतिहासिक शुक्ल तालाब प्रथम स्वतत्रता संग्राम में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ने वाले गुमनाम जांबाजों की शहादत का मूक गवाह है

Aug 14, 2017 / 04:06 pm

Ruchi Sharma

kanpur dehat

कानपुर देहात.जहां कभी घोड़ों की टापों की आवाजें एव तलवारों की खनक सुनाई दिया करती थी और गोरों के अत्याचार की गवाही देता वह शुक्ल तालाब, जहां देश की आज़ादी की जंग लड़ने वाले क्रांतिकारियों की शहादत की चीखें सुनाई देती थी, जिन्हे अंग्रेज अफसर हैवलाक ने एक महीने तक अपनी अदालत लगाकर मौत की सजा सुनाते हुये नीम के पेड़ से प्रतिदिन एक-एक करके फांसी पर लटका दिया था।
 

जिसके बाद राजा विजय सिंह ने अंग्रेजों द्वारा दस हजार का ईनाम घोषित किये गये नाना साहब के उनके किले में जान बचाने के लिये आने पर राजा विजय सिंह ने सेना को किले के चारो दिशाओं मे लगा दिया और अंग्रेजों का संहार कर उनकी लाशों को कुएं में दफन कर दिया था। जी हां बात हो रही है शाहपुर की रानी वबाढापुर के राजा विजय सिंह के किले की जहां आज उस वीराने किले में चिडियों की चहचहाहट कभी नहीं सुनाई देती है लेकिन किले की जर्जर दीवारें आज भी उसकी गवाही देती है।
अकबरपुर का शुक्ल तालाब शहादत का प्रतीक

यह ऐतिहासिक शुक्ल तालाब प्रथम स्वतत्रता संग्राम में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ने वाले गुमनाम जांबाजों की शहादत का मूक गवाह है। आजादी के गदर के दौरान तालाब के उत्तर दिशा में स्थित बारादरी में अंग्रेज अफसर हैवलाक ने अदालत लगाकर 1858 में शाहपुर की रानी के 7 क्रांतिकारियों को नीम के पेड़ से लटका कर फांसी दी थी।
 

इसके बाद हैवलाक ने इसी बारादरी में लगातार एक महीने तक अदालत लगा प्रतिदिन क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया था। इस गदर के बाद अंग्रेजी सेना ने इस किले को ध्वस्त कर यहां तहसील व कोतवाली संचालित कराई थी। इसके बाद 1998 तक इसी जगह तहसील कायम रही लेकिन 28 अगस्त 1999 को नया भवन बनने के बाद माती रोड पर तहसील का संचालन हो गया।
 

नाना साहब के लिये राजा ने किया था अंग्रेजों को कुएं में दफन

1857 में बाढापुर के राजा विजय सिंह का किला आजादी के दीवानों की गतिविधियों का केंद्र था। बिठूर से आये नाना साहब पेशवा अपने साथियों के साथ जनवरी 1858 में बाढापुर के राजा विजय सिंह के आतिथ्य में ठहरे थे। उनकी गिरफ्तारी के लिये 10 हजार का ईनाम घोषित हुआ था। इसका रिकार्ड 1947 तक अकबरपुर तहसील में उपलब्ध रहा। अंग्रेजी सेना द्वारा नाना साहब को पकड़ने के लिये आने की भनक लगने पर राजा विजय सिंह की सेना के दस्तों ने किले के उत्तर दिशा से अंग्रेज फौज के आने पर छापामार कर उन्हे मौत के घाट उतार दिया था। इसके बाद वहां बने कुएं में उनके शव दफन कर कुएं को पटवा दिया था। गुराना खेत के नाम से चर्चित उस स्थान पर आज लोग खेती करते है।

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