अक्षयवट
इसी स्थल पर अक्षय वट भी है, जहां लव कुश ने अश्वमेध यज्ञ के दौरान भगवान श्रीराम के घोड़े व हनुमान जी को बांध दिया था। लव कुश आश्रम परिसर में स्थित यह अक्षयवट हजारों वर्षों बाद आज भी भक्तों की आस्था का केंद्र है।
मां जानकी की इकलौती मूर्ति
जानकी कुंड परिसर में बनी जानकी मंदिर देश का एकमात्र ऐसी मंदिर है जहां भगवान श्री राम के बिना मां जानकी विराजमान है। यहीं पर मां जानकी ने लव कुश को जन्म दिया था। मंदिर में मां सीता के साथ लव कुश की मूर्ति भी है। मान्यता है मर्यादा धर्म का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने मां जानकी का परित्याग किया था। इसके बाद मां जानकी ने यहीं आश्रय लिया।
जहां मां धरती के अंदर समाईं
बाल्मीकि आश्रम में जानकी कुंड के नाम से पाताल तोड़ कुआं है। मान्यता है कि मां सीता यहीं पाताल में समा गईं। भक्तगण जानकी कुंड की परिक्रमा लगाकर पूजा अर्चना करते हैं। इसी के पास परिहर वह स्थान है जहां लक्ष्मण जी ने मां सीता का परित्याग किया था। परिहर का अपभ्रंश है परियर। तुलसीदास ने लिखा है-
ब्रह्मा व्रत सघन वन भारी, आयहु त्याग विदेह कुमारी।
उस वक्त इस क्षेत्र में बियाबान जंगल था। जहां सूरज की रोशनी भी जमीन को नहीं मिलती थी। जानकी कुंड परियर के मुख्य पुजारी रमाकांत त्रिपाठी बताते हैं कि यह पूरा स्थल मां सीता से जुड़ा है। यहां वैशाख की नवमी तिथि, जानकी जयंती के रूप में मनाया जाता है। भादों की अमावस्या, फागुन की दशमी, कार्तिक पूर्णिमा, कुंवार पूर्णिमा (बाल्मीकि जयंती) आदि अवसरों पर विशेष पूजा अर्चना होती है।
भुमेश्वर महादेव
बर खंडेश्वर वह स्थान है जहां अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को लव कुश द्वारा पकड़े जाने के बाद महाराज भरत की सेना युद्ध के लिए पहुंची थी। मान्यता है कि युद्ध से पहले यज्ञ का होता था। भगवान राम की सेना का नेतृत्व कर रहे भरत ने यहां भुमेश्वर महादेव की स्थापना की थी। और महादेव की सिद्धि प्राप्त की थी।
वर खंडेश्वर
वर खंडेश्वर में लव कुश ने यज्ञ के साथ खंडेश्वर महादेव की स्थापना की थी। इस पूजा के बाद भरत की सेना का बल खंडित हुआ और लव कुश ने विजय प्राप्त की।
कैसे पहुंचे जानकी कुंड महर्षि बाल्मीकि लव-कुश आश्रम
लव-कुश आश्रम सडक़ मार्ग से जुड़ा है। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन उन्नाव जंक्शन है। इसी प्रकार कानपुर मुख्यालय से जानकी कुंड परियर की दूरी भी लगभग 30 किलोमीटर है। बिठूर होते हुए गंगा नदी पार कर महर्षि बाल्मीकि लव-कुश आश्रम तक पहुंचा जा सकता है।