न्यायालय ने कहा, ‘‘कॉलेज द्वारा अकादमिक सत्र 2017-18 के लिए एमबीबीएस पाठ्यक्रम के प्रथम वर्ष में 132 छात्रों को दाखिला देना नियमों का इरादतन उल्लंघन है, जिसे माफ नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ता कॉलेज को इस न्यायालय की रजिस्ट्री में आज से आठ हफ्तों के अंदर पांच करोड़ रुपये जमा करने का निर्देश दिया जाता है।’’ शीर्ष न्यायालय ने मेडिकल कॉलेज को यह भी निर्देश दिया है कि यह राशि किसी भी रूप में छात्रों से नहीं वसूली जाए। न्यायालय ने कहा कि कॉलेज ने 132 छात्रों को अपने मन से दाखिला दिया। इसके बाद उन्हें अध्ययन जारी रखने की अनुमति दी, जबकि एमसीआई ने उन्हें निकालने का निर्देश दिया था।
पीठ ने कहा कि छात्रों के दाखिले को रद्द करने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा, लेकिन उन्हें उनका एमबीबीएस पाठ्यक्रम पूरा होने के बाद दो साल सामुदायिक सेवा करने का निर्देश दिया क्योंकि वे लोग बेकसूर नहीं हैं और उन्हें पता था कि उनके नाम की सिफारिश डीजीएमई ने नहीं की थी।