बता दें कि, प्रदेश के उज्जैन जिले के भीड़ावद गांव ऐसी परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है, जिसे देखने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। चार हज़ार की आबादी वाले इस गांव में दीपावली के दूसरे दिन दर्जनों लोग मन्नत के तहत जमीन पर लेट जाते हैं। इसके बाद उनके ऊपर गायों के झुंड को छोड़ दिया जाता है। दर्जनों गाय दौड़ते हुए जमीन पर लेटे लोगों के ऊपर से गुजरती हैं। इस नजारे को देखने के लिए यहां जिले समेत आसपास के हजारों लोग गांव में इकट्ठे होते हैं।
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5 दिन पहले घर छोड़कर मंदिर में रहने लगते हैं लोग
गांव की ये आत्मघाती परंपरा कब से शुरु हुई है। इसके बारे में तो गांव के किसी शख्स को पता नहीं है। लेकिन, यहां का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति भी हर साल इस परंपरा को देखते हुए ही बड़ा हुआ है। इससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि, ये परंपरा काफी पुरानी है। इस गांव और आसपास के इलाकों के वो लोग यहां आते हैं जिन्हें मन्नत मांगनी होती है या जिनकी मन्नत पूरी हो जाती है, वो दीपावली के पांच दिन पहले ग्यारस के दिन अपना घर छोड़ देते हैं और यहां माता भवानी के मंदिर में आकर रहने लगते हैं। दिवाली के अगले दिन फिर ये मेला लगता है। जिस किसी की भी मन्नत पूरी होती है, उसे गायों के सामने जमीन पर लेटना होता है। बता दें कि, इस साल भी गांव के 7 लोगों ने मन्नत मांगी थी।
गांव में निकाला जाता है मन्नत मांगने वाले का जुलूस
दीपावली के अगले दिन मन्नत पूरी होने वाला व्यक्ति सबसे पहले मंदिर में पूजा करता है। इसके बाद उसे गांव के लोगों द्वारा उसका जूलूस गांवभर में घुमाया जाता है। इसके बाद संबंधित व्यक्ति गांव के एक सुनिश्चित स्थान पर आकर मार्ग पर लेट जाता है। इसके बाद ग्रामीण पूरे गांव की गायें मन्नत मांगने वाले व्यक्ति के रास्ते पर छोड़ देते हैं। सरपट दौड़ते हुए गायें इन्हें रौंधते हुए निकल जाती हैं। मन्नत मांगने वाले लोगों को इस बात का भरोसा रहता है कि, पुरखों से चली आ रही इस परंपरा को निभाने के बाद मांगी हुई मुराद तो पूरी होती ही है। साथ ही, समृद्धि आती है।
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