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उज्जैन के इस सम्राट का 20 वर्ष की आयु में हो गया था राज्याभिषेक, जानिए इनसे जुड़े और भी रोचक तथ्य…

इन्हीं के नाम से संवत प्रारंभ हुआ, इतना ही नहीं विभिन्न संस्कृत साहित्यों में वर्णन भी मिलता है।

उज्जैनMar 14, 2018 / 05:37 pm

Lalit Saxena

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उज्जैन. डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित ने सम्राट विक्रमादित्य से संबंधित साहित्य पर प्रकाश डालते हुए बताया कि विभिन्न संस्कृत साहित्यों में सम्राट विक्रमादित्य का वर्णन मिलता है। १८ पुराणों में से तीन स्कंदपुराण, भविष्यपुराण और भविष्योत्तर पुराण में की गई व्याख्या के अनुसार कलि संवत् 3000 में विक्रमादित्य हुए थे।

101 ईसा पूर्व हुआ था जन्म
सम्राट विक्रमादित्य का जन्म 101 ईसापूर्व में हुआ था। स्कंदपुराण में विक्रमादित्य के राज्यारोहण के बारे में वर्णन मिलता है। इसके अनुसार सम्राट विक्रमादित्य जब केवल 20 वर्ष की आयु के थे, तब उनका राज्याभिषेक किया गया था। इतिहास के अनुसार यह घटना 81 ईसापूर्व की है। 57 बीसी में विक्रमादित्य द्वारा विक्रम संवत प्रारम्भ किया। ये निश्चित तिथियां हमें पुराणों के माध्यम से प्राप्त होती हैं। इसी कड़ी में आगे पता चलता है कि सम्राट विक्रमादित्य की आयु लगभग 137 वर्ष 7 माह और 15 दिन की थी। उज्जैन में उन्होंने लगभग 100 सालों तक शासन किया। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य उनके प्रतिस्पर्धी और उन्हीं के समान गुणवान थे। इस बात की जानकारी भविष्योत्तर पुराण में मिलती है।

साहित्यिक साक्ष्यों पर शोध संगोष्ठी
विक्रम संवत 2075 विक्रमोत्सव के दूसरे दिन स्वराज संस्थान संचालनालय मध्य प्रदेश शासन संस्कृति विभाग द्वारा सिंधिया प्राच्य संस्थान विक्रम विश्वविद्यालय एवं महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ के संयुक्त तत्वावधान में सिंधिया प्राच्य शोध संस्थान के सभाकक्ष में सम्राट विक्रमादित्य के साहित्यिक साक्ष्यों पर शोध संगोष्ठी आयोजित की। अध्यक्षता डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित ने की।

विक्रमादित्य आम जनमानस में रचे-बसे हैं
डॉ. किरण रमण सोलंकी द्वारा सम्राट विक्रमादित्य से संबंधित साहित्यिक साक्ष्यों पर कहा गया कि उज्जैन के संवत प्रवर्तक राजा विक्रमादित्य की उनके युग में वैश्विक पहचान रही है। इनकी लोकप्रियता से संबंधित साहित्य देश-विदेश में विस्तारित है। डॉ. शिव चौरसिया ने कहा कि सम्राट विक्रमादित्य आम जनमानस में हमेशा से रचे-बसे हैं। उनके कार्यकाल को लेकर अक्सर इतिहासकारों में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन उनके अस्तित्व के अत्यंत ठोस प्रमाण अब मौजूद हैं। संगोष्ठी में आचार्य केदारनाथ शुक्ल डॉ. ऋषिकुमार तिवारी, लेखराज शर्मा, डॉ. केतकी त्रिवेदी, डॉ. अजय शर्मा, रमेश शुक्ल, महर्षि पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय के डॉ. तुलसीदास परोहा और डॉ. आरके अहिरवार मौजूद थे। आभार प्रदर्शन डॉ. रमण सोलंकी ने माना।

कविताओं के माध्यम से सम्राट का वर्णन
डॉ. अजीता त्रिवेदी ने संगोष्ठी में कहा कि मराठी लेखक स्व. कृष्णा पांडुरंग कुलकर्णी ने आज से लगभग 100 से 125 वर्ष पूर्व अपनी कविताओं के माध्यम से सम्राट विक्रमादित्य के साम्राज्य का वर्णन किया था। इन वांग्मय कथाओं में वर्णन मिलता है कि विदेशी साहित्यकारों के मन में जितना आकर्षण अवन्तिका नगरी के प्रति था, उतनी ही श्रद्धा यहां के सम्राट विक्रमादित्य के प्रति थी। आचार्य शैलेन्द्र शर्मा ने कहा कि मंगोलीयन भाषा में एक ग्रंथ लिखा गया है, जिसका नाम है अशरीभुजी। इसमें सम्राट विक्रमादित्य की 32 पुतलियों द्वारा राजा भोज को बताई गई कथाओं का वर्णन मिला है। इसका बाद में रूसी और फ्रेंच भाषा में भी अनुवादन किया गया। सम्राट विक्रमादित्य के आम जनता के साथ सम्बन्धों के बारे में भी इस ग्रंथ में कई प्रमाण मिले हैं।

डॉ. जीवनसिंह ठाकुर के अनुसार इतिहास के ऐसे चरित्र ही सदैव अमर रहते हैं, जो किताबों से बाहर निकलकर जनता के हृदय में बस जाते हैं। सम्राट विक्रमादित्य की कथाएं आमजन द्वारा पीढिय़ों से अपने बच्चों को सुनाई जाती रही हैं। बेताल पच्चीसी की सारी कहानियां अहिंसा, शिक्षा और सदाचार पर समाप्त होती हैं। विक्रमादित्य की समस्त कथाओं का वर्तमान में संकलन किया जाना आवश्यक है। विक्रमादित्य की नैतिक सत्ता का सबसे बड़ा प्रमाण तो स्वयं जनता है।

ये थे मुख्य अतिथि
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ. केदारनाथ शुक्ल तथा राजेन्द्र कुमार व्यास थे। कार्यक्रम की रूपरेखा सिंधिया शोध संस्थान के प्रोफेसर डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने प्रस्तुत की। अतिथियों द्वारा सम्राट विक्रमादित्य के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलन कर और पुष्पमाला अर्पित कर संगोष्ठी का शुंभारंभ किया।

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