वैसे तो ये पर्व दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है, लेकिन इस बार दिवाली के अगले दिन पड़े साल के आखिरी सूर्यग्रहण के चलते गाय गौहरी पर्व और उसी दिन मनाई जाने वाली इस विशेष परंपरा को एक दिन छोड़कर यानी आज मनाया गया है। इस दौरान बड़नगर तहसील के ग्राम भिड़ावद में ग्रामीणों ने सुबह गोवर्धन पूजा की, इसके बाद मन्नतधारियों के ऊपर से गायें गुजरीं। ग्रामीणों के अनुसार, इस अनूठी परंपरा का निर्वहन बीते कई वर्षों से उनके पुरखों द्वारा किया जाता आ रहा है, जिसे आज भी उसी विधि विधान से मनाया जा रहा है। खास बात ये है कि, जिन मन्नतधारियों की मन्नत इस परंपरा को पूरा करने के बाद पूरी होती है, वो लोग 5 दिन गांव के मंदिर में रहकर भजन-कीर्तन करते हैं।
गांव की खुशहाली के लिए है परंपरा- मान्यता
गोवर्धन पूजा से पहले ग्रामीण अपनी गायों को सजाकर लाते हैं और पूजन के बाद जमीन पर लेट जाते हैं। इसके बाद सैकड़ों गायें, एक-एक कर उनके ऊपर से गुजरती हैं। मान्यता है कि इस परंपरा के निर्वहन से गांव में खुशहाली बनी रहती है। परंपरा के पीछे लोगों का मानना है कि गाय में 33 कोटि के देवी-देवताओं का वास है। गाय के पैरों के नीचे आने से भगवान का आशीर्वाद मिलता है।
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इस तरह मनाई जाती है परंपरा
दीपावली के अगले दिन सुहाग पड़वा पर भीडावद गांव के ग्रामीण सूरज निकलने से पहले ही सदियों से चली आ रही गौरी पूजन की परंपरा की तैयारियों में जुट जाते हैं। सूर्योदय के साथ ही मंदिर की घंटी बजने लगती है। ग्रामीण सबसे पहले गायों को स्नान करवाते हैं। उन्हें सजाने की तैयारी शुरू होती है। गाय के सींग, खुरों और शरीर को रंगों से सजाया जाता है। इसके बाद गायों को लेकर चौक पहुंचते हैं। इसके बाद 5 दिनों से घर छोड़कर मंदिर में पूजा-पाठ करने वाले मन्नतधारी पूजन के बाद जुलूस के रूप में यहां पहुंचते हैं। इसके बाद गांव के मुख्य मार्ग पर मन्नतधारी इकट्ठे जमीन पर मुंह के बल लेट जाते हैं। सज-धजकर तैयार गायों को उनके ऊपर से गुजारा जाता है। गायें दौड़ते हुए मन्नतधारियों के ऊपर से गजर जाती हैं।