बचनपे में अपने दादा-दादी या नाना-नानी से उनके बचपन काल में समय की गणना और सूर्य की गति के बारे में सुना था। आज जब महाकाल के दर्शन करने उज्जैन आए तो किसी ने जीवाजी वेधशाला की जानकारी देते हुए यहां लगे यंत्रों के बारे में बताया। इसे देखने की लालसा जागी और यहां आए तो व्यक्तिगत रूप से जानकारी देने के साथ क्यूआर कोड से फिल्म देखकर यंत्रों की पूरी जानकारी मिल गई। इन यंत्रों के माध्यम से यत पता चला कि किस प्रकार आकाशीय घटनाक्रमों की गणना होती है और उससे समय के साथ नक्षत्रों और ग्रहों का पता चलता है। बचपन में तो बातें सुनी थी, आज यंत्रों के माध्यम से बचपन की बातें प्रायोगिक रूप से समझ में आई।
–प्रकाश सोनी, सूरत गुजरात से आए पर्यटक
1. दिगंश यंत्र
इस यंत्र से बगैर किसी सेटेलाइट व टेलिस्कोप के सूर्य व अन्य ग्रह नक्षत्रों के उन्नतांश या क्षितिज से ऊंचाई और दिगंश या पूरब-पश्चिम दिशा के बिंदू से क्षितिज वृत्त में गुणात्मक दूरी पता की जा सकती है।
जब घडिय़ां नहीं थी तब भी समय था। जब समय शब्द प्रचलन में नहीं था तब भी समय था। सूर्य और समय का एक अटूट रिश्ता है। दिनभर का समय जानने के लिए सम्राट यंत्र या यों कहें कि सूर्य घड़ी का प्रयोग होता था। जीवाजी वेधशाला में लगे सम्राट यंत्र से आकाश में सूर्य से दीवार पर पडऩे वाली छाया जिस निशान तक पहुंचती है उससे उज्जैन का स्पष्ट स्थानीय समय जान सकते हैं। सवाई राजा जयसिंह द्वितीय के समय के खगोलविदों और ज्योतिषियों ने सूर्य की मदद से सही समय का पता लगाने के लिए इस वैज्ञानिक यंत्र का निर्माण किया था।
आकाश गंगा में अनगिनत ग्रह और उपग्रह हर पल अनंत यात्रा करते रहते हैं। यह कल्पना करना थोड़ा कठिन है कि धरती पर किसी एक स्थान से इन ग्रहों का सटिक स्थान निर्धारण किया जा सकता है। हमारी प्राचीन वैज्ञानिक परंपरा ने १८वीं शताब्दी में नाड़ी वलय यंत्र बनाकर इसे आसान कर दिया। इस यंत्र के उत्तरी और दक्षिणि भाग से यह पता किया जा सकता है कि सूर्य किस गोलार्ध में है। नाड़ी वलय यंत्र से किसी भी ग्रह या नक्षत्र का उत्तरी भाग और दक्षिण भाग में होने का पता लगाया जा सकता है।
गणना, तथ्यों और अवलोकन के आधार पर बादलों से परे क्या है, का अनुमान लगाना ही खगोल शास्त्र का मुख्य उद्देश्य है। जीवाजी वेधशाला में लगे शंकु यंत्र से सूर्य के उत्तरायन अथवा दक्षिणायन होने की स्थिति पता चलती है। इस यंत्र के बीच में एक शंकु लगा हुआ है, जिसकी छाया उस पर बनी सात रेखाओं पर पड़ती है। यह रेखाएं बारह राशियों को प्रदर्शित करती है। इन रेखाओं पर पडऩे वाली शंकु की छाया से २२ दिसंबर वर्ष के सबसे छोटे दिन, २१ मार्च और २३ सितंबर दिन-रात बराबर और २१-२२ जून को वर्ष के सबसे बड़े दिन का पता चलता है।
ग्रह नक्षत्रों के नतांश को जानने के लिए कई साल पहले जब हमारे पास उन्नत साधन नहीं थे, वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला भित्ति यंत्र इसका पता कर सकता था। जीवाजी वेधशाला में लगे इस यंत्र से आकाशीय घटनाक्रमों की जटिल गणना का पता किया जा रहा है, जिस आधार पर यहां से खगोलिय ज्ञान की जानकारी सार्वजनिक की जाती है।