उज्जैन. चौरासी महादेवों की शृंखला में 40वें क्रम पर श्री कुंडेश्वर महादेव का मंदिर आता है। इनके दर्शन-पूजन से शिव लोक प्राप्त होता है। साथ ही तीर्थ यात्रा का फल प्राप्त होता है। पत्रिका डॉट कॉम के जरिए आप 84 महादेव की यात्रा का लाभ ले रहे हैं।
पार्वती ने कहा मुझे पुत्र से मिलना है
एक बार पार्वतीजी ने शिवजी से कहा कि उनका पुत्र वीरक कहां है, तो शिवजी ने कहा कि तुम्हारा पुत्र महाकाल वन में तपस्या कर रहा है। इस पर पार्वती ने कहा कि वे उसे देखना चाहती हैं, इसलिए वे भी उनके साथ चलेंगी। दोनों नंदी पर सवार होकर महाकाल वन के लिए निकले। रास्ते में एक पर्वत पर पार्वती के भयभीत होने से कुछ देर दोनों रुक गए। शिवजी ने पार्वती से कहा कि तुम कुछ देर यहां रुको मैं पर्वत देखकर आता हूं। कुंड नामक गण तुम्हारी सेवा में रहेगा और आज्ञा मानेगा। शिवजी को पर्वत घूमते हुए 10 वर्ष बीत गए। शिव के न लौटने पर पार्वती विलाप करने लगीं।
जब कुंड गण नहीं करा सका शिव के दर्शन
माता पार्वती ने कुंड गण को आज्ञा दी कि वह उन्हें शिव के दर्शन कराए। जब कुण्ड दर्शन नहीं करा सका, तो पार्वती ने उसे मनुष्य लोक में जाने का श्राप दिया। इसी बीच शिव वहां उपस्थित हो गए। पार्वती ने कुण्ड से कहा कि तुम महाकाल वन में जाओ, वहां भैरव का रूप लेकर खड़े रहो। उत्तर दिशा में सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला शिवलिंग है, उसका पूजन करो। शिवलिंग का नाम तुम्हारे नाम पर कुण्डेश्वर विख्यात होगा।
दर्शन से मिलता है यह फल
कुण्ड ने पार्वती की आज्ञा से महाकाल वन में शिवलिंग का दर्शन कर पूजन किया और अक्षय पद को प्राप्त किया। मान्यता है कि शिवलिंग के दर्शन मात्र से सभी तीर्थों की यात्रा का फल प्राप्त होता है।
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