तितरड़ा तालाब के पास डाल रहे भराव, पाल के पास स्वरूप बिगाड़ रहे
मुकेश हिंगड़ उदयपुर. शहर के समीप तितरड़ी स्थित तीतरड़ा तालाब की पाल के पास की जमीन पर इन दिनों दिन-रात डम्पर चल रहे है। पाल के पास की जमीन के मूल स्वरूप को बिगाड़ा जा रहा है। साथ के साथ वहां बड़ी मात्रा में भराव डाला जा रहा है, इस बीच वहां बाधा बन रहे पेड़ों को भी काटा जा रहा है। क्षेत्रवासियों की शिकायत पर यूआइटी की टीम भी मौके पर पहुंची। तीतरड़ा तालाब की पाल के पास की आराजी में यह भराव ड़ाला जा रहा है। वहां पर बड़ी संख्या में डम्पर लाकर भराव पटकर जगह को समतल किया जा रहा है। क्षेत्रवासियों ने तालाब के पास में इस तरह की गतिविधियों को देखकर विरोध जताया। एक महीने पहले इस तरह की गतिविधियों की थोड़ी संभावना लगी तो जिला कलक्टर चेतन देवड़ा को लिखित में शिकायत दी थी। इस बीच वहां डम्पर से भराव लाकर डालने का काम तेजी से बढ़ा तो लोगों ने फिर शिकायत की और यूआईटी को भी बताया। लोगों ने बताया कि इस कार्य के दौरान वहां पेड़ भी काटे जा रहे है। लोगों ने बताया कि जब भी तालाब भरता है तो जिस स्थान पर भराव डाला जा रहा है वहां तक पानी भरता है।
एक बावड़ी भी जिसमें साल भर पानी रहता पाल के पास बड़ी संख्या में राष्ट्रीय पक्षी मोर रहते है, जिस जगह पर भराव ड़ाला जा रहा है वहां पर मोर, बंदर भी रहते है। साथ ही वहां पर पुरानी बावड़ी है जिसमें साल भर पानी भरा रहता है। सांसद व विधायकों सहित अन्य जनप्रतिनिधयों ने तितरड़ा तालाब को पर्यटन स्थल बनाने की मांग कई बार की है। इसके लिए मुख्यमंत्री से लेकर यूआईटी तक अपनी मांग रखी है।
यूआईटी ने रिपोर्ट बनाई यूआईटी की ओर से टीम ने मौका देखा गया तो वहां पाल के पास ये सारी गतिविधियां देखी गई। यूआईटी तहसीलदार को पटवारी की ओर से दी गई रिपोर्ट में तालाब के पाल के पास इस जमीन के मूल स्वरूप को बिगागडऩे की रिपोर्ट दी गई।
IMAGE CREDIT: Pramod Soniतालाब के बारे में जाने – करीब 60 से 80 बीघा के क्षेत्र में तालाब फैला है – तालाब पेटे में खेती होती है – तालाब खातेदारी हिस्से में है – राष्ट्रीय पक्षी मोर की शरण स्थली है
इनका कहना है…. तितरड़ी के इस तालाब में किसी भी प्रकार की आवासीय, व्यावसायिक या प्रदूषणकारी गतिविधि अवैध है। वहां जो मिट्टी भराव की शिकायत आई है वह कार्रवाई वर्ष 2007 के राजस्थान उच्च न्यायालय के उदयपुर के छोटे तालाबो पर दिए फैसले का भी उल्लघंन है। – अनिल मेहता, झील प्रेमी
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