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उदयपुर

छत्तीसगढ़ की मुमुक्षु कुमकुम बनी निरामय श्री, राम गुरु के लगे जयकारे

कानोड़ में जैन भागवती दीक्षा कार्यक्रम संपन्न, देश भर से हजारों लोग जुटे
हजारों की भीड़ में बैठी मुमुक्षु कुमकुम गुरुवर का आदेश पाते ही हो गई साधुओं के संग

उदयपुरMay 29, 2023 / 02:32 am

surendra rao

छत्तीसगढ़ की मुमुक्षु कुमकुम बनी निरामय श्री, राम गुरु के लगे जयकारे

छत्तीसगढ़ की मुमुक्षु कुमकुम बनी निरामय श्री, राम गुरु के लगे जयकारे

कानोड़. उदयपुर. जिले के कानोड़ कस्बे के लिए रविवार का दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया।शिक्षा नगरी कानोड़ के जैन शिक्षण संस्थान में रविवार को भव्य जैन भागवती दीक्षा कार्यक्रम संपन्न हुआ। यहां बिराजित जैनाचार्य रामलाल म.सा. के सान्निध्य में छत्तीसगढ़ की मुमुक्षु कुमकुम कोटड़िया सांसारिक जीवन छोड़कर साधू बन गई । जैनाचार्य रामलाल महाराज ने मुमुक्षु कुमकुम का नामकरण करते हुए कहा कि आज से परिवार की कुमकुम निरामय श्री म .सा. के नाम से जानी जाएगी। आचार्य ने कहा कि हम चाहते थे कि हमारे संघ में कुमकुम नाम की कोई महासती नहीं है, उनका नाम यही रखा जाए लेकिन जीवन को बदला है तो कुछ बदलाव होना भी जरूरी था । कुछ ही देर बाद गुरुदेव का आदेश पाते ही हजारों की भीड़ में बैठी मुमुक्षु कुमकुम से बनी निरामय श्री साधुओ के साथ हो गई। साध्वियां उठी और पूरे आदर भाव से जैन दीक्षा ले चुकी निरामय श्री को अपने साथ ले गई । जैन आचार्य रामलाल जी महाराज साहब ने प्रवचन में कहा कि मनुष्य को हमेशा विद्यार्थी जीवन जीना चाहिए, निरंकुश व्यक्ति व निरंकुश मन कभी भी मन को स्थिर नहीं रख सकता, विद्या पाने के लिए तपना पड़ता है । जीवन को ऐसे कार्य में लगाओ जो आदि अनादि काल के जीवन मरण को समाप्त कर सके । उन्होंने कहा कि साधु जीवन में ना कोई आकर्षण होता है और न ही आकांक्षा, ना भूख और ना प्यास, सादगी का जीवन जीना ही सन्यासी है । जीवन में कभी भी अवरोधों से घबराना नहीं, मंजिल को पाना है तो अवरोधों को पार करना ही पड़ेगा, मन की कामना ही पतन का कारण बनती है। आचार्य ने भगवान राम-कृष्ण व यमुना मैया के उदाहरण देते हुए लोगों को जीवन जीने की कला बताई । आचार्य उपाध्याय प्रवर राजेश मुनि म.सा. ने भी प्रवचन दिए। दीक्षा कार्यक्रम में महिलाओं के मंगल गीतों ने पूरा माहौल धर्ममय बना दिया, वही राम गुरु के जयकारों से पूरा पांडाल गूंज उठा ।
हजारों लोगों ने ने दी विदाई
मुमुक्षु कुमकुम का सांसारिक जीवन छोड़ संन्यास ग्रहण करना परिवार के लिए गर्व का विषय तो था ही, वहीं बेटी के संन्यास जीवन में विदाई को लेकर उनकी आंखें भी बार-बार नम हो रही थी । बेटी के धर्म कार्य की ओर बढ़ने को लेकर परिवार में उत्साह था, वहीं देश भर से आए हजारों लोगों ने कुमकुम को संन्यास जीवन के लिए बधाई दी ।
हजारों की भीड़ में ना मोबाइल चला न हुई कोई आवाज
दीक्षा कार्यक्रम के दौरान गुरुदेव के आदेश अनुसार आधुनिक संसाधन से पूरा कार्यक्रम दूर था। केवल पंडाल सजा था, लेकिन माइक की कोई व्यवस्था नहीं होने के बावजूद अनुशासन इतना था बिना माइक के आचार्य श्री की आवाज हजारों की भीड़ तक पहुंच रही थी । हजारों की उपस्थिति होने के बावजूद कहीं भी मोबाइल की रिंगटोन तक नहीं बजी । आचार्य श्री के निर्देश के अनुसार कार्यक्रम में मोबाइल सहित संसाधनों का उपयोग नहीं किया गया।
सड़क पर वाहनों की लगी कतारें
नगर में इतना बड़ा दीक्षा कार्यक्रम व देशभर से हजारों की भीड़ जुटने के बावजूद पुलिस प्रशासन की कोई व्यवस्था नहीं थी। जिससे सड़कों पर वाहनों की कतारें लग गई। इसके बाद समाज के जागरूक युवाओं ने ही वाहनों को पार्किंग करवाई, जिससे सड़क पर व्यवस्था बहाल हो पाई ।
परिवार ने अपने हाथों से मुमुक्षु कुमकुम को धारण करवाया संन्यासी वेश
जब दीक्षा लेने की घड़ी नजदीक आई तो परिवार के दिलों की धड़कने भी बढ़ रही थी। बार-बार पिता और मां की आंखें खुशी से भर रही थी कि उनकी बेटी आज से उनके पास नहीं रहेगी और धर्म कार्य के लिए वह हमेशा के लिए विदा हो रही है। परिवार ने अपनी लाडली पुत्री कुमकुम को खुशी के आंसू के साथ साधु वेश धारण करवाया और गुरुदेव के चरणों में सौंप दिया । जिसने भी यह दृश्य देखा अपने आंसू नहीं रोक पाया। एक ही सवाल हर जेहन में था साधु बनना कोई आसान काम नहीं होता । भौतिक संसाधनों से दूर जीवन पर्यंत कठोर तपस्या के साथ जीना बहुत मुश्किल होता है । लेकिन मुमुक्षु कुमकुम के चेहरे पर ऐसे कोई भाव नहीं दिखे जो उसको साधु बनने के लिए निराश कर रहे हो । खुशी के साथ परिवार से विदा होकर कुमकुम ने संन्यासी जीवन में प्रवेश कर लिया।

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