राजस्थान पत्रिका के 3 दिसम्बर के अंक में एमबी अस्पताल में निजी एम्बुलेंस संचालकों की दादागिरी…मिलीभगत से चल रही अधिकांश कंडम शीर्षक से खबर प्रकाशित की गई थी। खबर प्रकाशित होने के बाद अधिकांश एम्बुलेंस अस्पताल परिसर से बाहर निकलकर चेतक वाले मार्ग पर गेट के पास ही खड़ी हो गई। वहीं दो एम्बुलेंस संचालक तो पूरी दादागिरी दिखाते हुए दूसरे दिन भी कार्डियोलॉजी के बाहर ही खड़े रहे।
एक बार जांच हुई तो खुल जाएगी कंडम गाडिय़ों की पोल
निजी एम्बुलेंस अधिकांश कंडम स्थिति में है। चार एम्बुलेंस पर गुजरात के नम्बर है, यहां रजिस्टे्रशन नहीं होने पर उन पर नीली बत्ती लगाकर एम्बुलेंस बना दिया गया। अन्य एम्बुलेंस वाली गाडिय़ां 10 से 15 साल अवधि पार वाली गाडिय़ां है। इन गाडिय़ों की कभी भी चैकिंग नहीं होने से हर कोई व्यक्ति कंडम गाडिय़ों को एम्बुलेंस बनाकर मरीजोंं की जान को जोखिम में डाल रहा है। अभियान चलाकर पुलिस व परिवहन विभाग इन गाडिय़ों की जांच करेगा तो निश्चित रूप से अधिकांश गाडिय़ां बाहर हो जाएगी।
पार्किंग व्यवस्था भी होगी व्यवस्थित
अभी निजी एम्बुलेंस संचालकों का पूरा अस्पताल में कब्जा है, इनकी गाडिय़ां पूरे परिसर में खड़ी रहती है, इसके कारण पार्किंग व्यवस्था बिगड़ती है। अस्पताल प्रबंधन इन्हें एक जगह पर व्यवस्थित खड़ी करे तो निश्चित रूप से पार्किंग के लिए काफी जगह मिलेगी और व्यवस्था सुधरेगी।
प्री-पेड तक कम पहुंच रहे मरीज के परिजन
अस्पताल परिसर में प्री-पेड एम्बुलेंस की सेवा शुरू होने के बावजूद मरीजों व उनके परिजनों को उनके बारे में जानकारी नहीं है। पहले तो वार्ड में ही बाहर निकलने से पहले वार्ड बॉय व सफाई कार्मिक उन्हें गुमराह करते हुए प्री-पेड बूथ तक उन्हें पहुंचने भी नहीं देते। यहीं कारण है कि प्री-पेड बूथ शुरू हुए दो माह हो गए और जब तक 27 गाडिय़ों को सिर्फ 51 फेरे मिले, जबकि एम्बुलेंस सेवा का उपयोग करने पर प्रतिदिन सौ से ज्यादा लोग है।