प्रगतिशील किसान रमेश चन्द्र लुणावत, जो पिछले 4 साल से कद्दू की खेती पर दांव खेल रहे हैं, को इसमें अच्छी सफलता मिली है। वर्ष 2016 में डेढ़ बीघा खेत में कद्दू बुवाई की शुरुआत की तो अच्छी आमदनी हुई। इसे देख प्रत्येक साल कद्दू की बुवाई शुरू कर दी। अब ये 10 से 13 बीघा खेत में कद्दू की बुवाई कर बेहतर उपज ले रहे हैं। रमेश चन्द्र ने बताया की इस वर्ष उन्होंने 10 बीघा खेत में कद्दू की बुवाई मई के पहले सप्ताह में की थी, जिसके फल 2 सप्ताह पहले तोडऩा शुरू किए हैं। रोजाना बड़ी मात्रा में कद्दू बाजार में बेचकर प्रतिदिन हजारों रुपए की आमदनी हो रही है। रमेश ने बताया की 1 बीघा से इस बार 50 से 60 किवंटल कद्दू की पैदावार हुई है। अच्छी किस्म के ये कद्दू की फसल कम समय में तैयार होती है। खेतों में 20 किलो वजनी तक कद्दू हुआ है।
रमेश ने इस वक्त तक 200 क्विंटल कद्दू की बिक्री कर दी है। अभी 5 6 बीघा खेतों में फल की तुड़ाई बाकी है। ऐसे में इस वर्ष कुल 550 क्ंिवटल कद्दू पैदावार की उम्मीद है। बाजार में कद्दू फुटकर में 10 से 12 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रहा है। थोक में इसकी कीमत 5 से 9 रुपए प्रति किलो तक है। कद्दू को सीधे व्यापारी खरीद रहा है। शुरुआत में 9 तो अब इसकी कीमत ६ से ७ रुपए प्रति किलो मिल रही है। कद्दू से इस बार करीब साढ़े तीन लाख की आमदनी होने की उम्मीद है।
मेनार सहित ग्रामीण इलाकों में कद्दू को लेकर विशेष मान्यता है। परिवार की महिलाएं या लड़कियां इसको चीरा नहीं लगाती हैं। अंचल में पुरुष की ओर से इसे बधारने के बाद ही महिलाएं इसे चीरा लगाती हैं। मान्यता है कि कद्दू को सिर का स्वरूप माना जाता है। इसलिए नारियल की तरह इसे भी बधारने के लिए पुरुष ही जिम्मेदारी निभाते हैं। उत्तर भारत में इसे मां सीता का फल भी कहा जाता है।