काव्या की मदद की अनुपमा ने
वट सावित्री की पूजा करते हुए काव्या का पैर फिसल जाता है और गिरने लगती हैं। ये देख अनुपमा भागकर जाती है और काव्या को संभाल लेती हैं। इस बीच धागा काव्या के हाथ से अनुपमा के हाथ में चला जाता है। ये देख काव्या हैरान हो जाती है। घर लौटते हुए बॉ और बाबू जी अनुपमा को बताते हैं कि सारे लोग उनकी अच्छाई पर हंसते हैं। बाबू जी अनुपमा समझाते हैं कि उनकी अच्छाई में कमी नहीं है। बात ये है कि दुनिया में बुराई कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है।
वनराज ने अनुपमा को कहा थैंक्यू
काव्या को बचाने के लिए वनराज ऑफिस जाते हुए अनुपमा को थैक्यूं कहता है। जिसे सुन अनुपमा कहती हैं कि उसने एक पत्नी की मदद की है। वो समझती है कि एक पत्नी के लिए उसका व्रत कितना जरूरी है। अनुपमा वनराज से कहती है कि बेशक काव्या कैसी भी है। लेकिन उसका प्यार आपके लिए कम नहीं है।
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काव्या के पैर अनुपमा ने लगाई दवाई
काव्या के पैर में चोट लगने के उसके पैर में दर्द होता है और वो बॉ को फोन मिलाती है। लेकिन पूजा करने की वजह से बॉ अनुपमा को काव्या के कमरे में भेजती हैं। काव्या अनुपमा को कहती है कि उनके पैर में काफी दर्द हो रहा है। बाम ला दो। बाम लाने के बाद काव्या अनुपमा को कहती है वो उसके पैर में भी लगा दें। अनुपमा काव्या के पैर में बाम लगाना शुरू कर देती और इस बीच काव्या अनुपमा की तस्वीर खींचकर राखी दवे को भेज देती है। अनुपमा काव्या को कहती है कि उन्हें अब ज्यादा आराम मिलेगा, क्योंकि उनके पास जो पैर दबाते हुए उनकी तस्वीर है। उसे देख उनका दर्द खत्म हो जाएगा।
वनराज-काव्या की बहस
वनराज ऑफिस से आता है और वो ऑफिस का काम करने लगता है। ये देख काव्या वनराज को कहती है उसके पास आकर बैठे आज उसके पैर में भी चोट आई। जिसे सुनकर वनराज उसके पास जाता है और बैठ जाता है। तभी काव्या को ऑफिस से फोन आ जाता है और वो फोन पर बात करने लगती है। ये देख वनराज परेशान हो जाता है। फोन कटते ही वनराज काव्या की तरफ से उठ जाता है।
वनराज काव्या को कहता है कि वो उसके लिए लंच बनाकर दिया करे क्योंकि कैफे में उससे सैंडवीच नहीं खाए जाते। काव्या वनराज से कहती है कि वो ऑफिस और किचन में काम करना उसके लिए बहुत मुश्किल है।
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वनराज की नौकरी को लेकर काव्या ने दिए ताने
वनराज बाबू जी के साथ बैठकर शतरंज खेल रहा होता है। तभी बाबू जी वनराज से पूछते हैं कि नौकरी का पहला दिन कैसा था? वनराज बताता है कि बेशक कैफे नई पीढ़ी के बच्चों के लिए है। लेकिन उन्हें वहां काम करके बहुत अच्छा लग रहा है। बाबू जी कहते हैं कि जहां खुशी से काम हो, वहीं अच्छा है। ये बात सुनकर काव्या भड़क जाती है और वनराज के कैफे में नौकरी करने पर भड़क जाती है। काव्या बातों ही बातों में वनराज को खूब ताने सुनाते हैं और उन्हें लूजर कह देती हैं। जिसे सुनकर वनराज दुखी हो जाता है।
समर ने लिया पिता वनराज का पक्ष
पिता के साथ बदतमीजी करते हुए काव्या को देख समर सामने आता है और कहता है कि कम से कम वो इस उम्र में काम करने का प्रयास तो कर रहे हैं। उन्हें फाइटर कहना चाहिए ना कि उन्हें लूजर कहना चाहिए। समर कहता है कि मज़ाक में जब उन्हें और उनकी मां अनुपमा को लूजर कहता था तो उन्हें काफी दुख होता था। लेकिन तुम तो पूरे परिवार को सामने ये कह रही हो, इस बीच किंचल के हाथ बड़ा प्रोजेक्ट लगता है। जिससे वो काफी खुश हो जाती है। किंचल वनराज से अपने इस प्रोजेक्ट में मदद करने के लिए कहती है।
( Pre– वट सावित्री पूजा के दौरान काव्या के पैर में चोट लग जाती है। काव्या अनुपमा से अपने पैर पर चोट दवाई लगवाते हुए उनकी तस्वीर खींच लेती है। वहीं काव्या पूरे परिवार के सामने वनराज की नौकरी का ताना देती है। )