गुणवत्ता के चलते टोंक के सरसों तेल की डिमांड प्रदेश के साथ पांच राज्यों में बढ़ रही है। जिले के कई उद्योग तो ऐसे हैं जो प्रदेश को छोड़ कर पश्चिम बंगाल में सरसों तेल की सप्लाई कर रहे हैं। हालांकि सरसों उत्पादन में प्रदेश के बाद हरियाणा, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश का नबर आता है। अच्छी गुणवत्ता के चलते टोंक जिले के तेल की मांग है। सालाना करीब 6 हजार करोड़ के तेल का निर्यात होता है। निवाई जिले में औद्योगिक हब भी बनता जा रहा है। जबकि जिले में 88 ऑयल मिल ही है।
उद्योगपतियों की माने तो निर्यात पर रोक हट जाए तो किसानों को उचित दाम मिल जाए। साथ ही रोजगार के अवसर भी बढ़ जाए। साथ ही व्यापारियों के एक्सपोर्ट लाइसेंस का भी उपयोग हो जाए।
रबी: एक हैक्टेयर में सरसों होती- 18 क्विंटल पोषाहार में हो सकता है उपयोग
कई तेलों को मिलाकर रिफाइंड तेल बनाया जाता है। उद्योगपतियों का कहना है कि इस तेल की प्रोसेसिंग में केमिकल का उपयोग होता है। रिफाइंड में 65 प्रतिशत फेट होता है। पॉम ऑयल पहले खाद्य सामग्री में काम नहीं आता था। अब इससे खाद्य सामग्री बनाकर बाजार में बेची जा रही है। यह स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है। इसके बावजूद यह तेल सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए बनने वाले पोषाहार में सरकार की ओर से स्वीकृत है। सरकार इसकी जगह सरसों तेल के आदेश जारी करे तो किसान और व्यापार को फायदा होगा।
दूसरी तरफ जिले में बीसलपुर बांध और अन्य नहरी क्षेत्रों से सिंचाई होने पर करीब ढाई से तीन लाख हैक्टेयर में सरसों की बुवाई होती है। जबकि बुवाई का कुल लक्ष्य ही 4 लाख है। इसमें एक चौथाई में सरसों को छोडकऱ अन्य फसलें होती है। जिले की सरसों की गुणवत्ता दाने में करीब 42 प्रतिशत (तेल) है। यह अच्छी मानी जाती है।
टोंक जिले की ऑयल मिल से कई ब्रांड भी तेल लेते हैं। वे इसे अपने प्रोडक्ट में शामिल करते हैं। इसके अलावा टोंक जिले का ब्रांड भी काफी मशहूर है। इसकी भी मांग अब बढ़ती जा रही है।