ऐसे में प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के दबाव में सड़कों और पुलिया को तोड़कर पानी का निकास हर साल कराना पड़ता है। जबकि इसका निस्तारण नालों पर किए गए अतिक्रमण और रियासतकाल में बने नालों को मूलरूप तक साफ नहीं करना है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि शहर के कई इलाके तो ऐसे हैं जहां नाला कहां से कहां तक है, इसे देखना तक मुश्किल है।
इसका कारण है कि उन पर या तो सीसी सड़क बना दी गई या फिर कई जगह तो स्थायी अतिक्रमण हो गए हैं। ऐसे में इनकी सफाई नहीं हो पाती और पानी का निकास नहीं हो पाता। इसके चलते शहर के बड़े इलाके में पानी भर जाता है। यह स्थिति कई सालों से शहर में बनी हुई है।
सिविल लाइन रोड स्थित रेडियावास तालाब में आधे शहर का पानी आता है। यह पानी यहां से बनास नदी में जाता है। इसमें कालीपलटन, सुभाष बाजार, घंटाघर, बड़ाकुआं, पांचबत्ती समेत अन्य बड़े इलाकों का बरसात का पानी नालों के जरिए रेडियावास में पहुंचता है।
इसके अलावा मोतीबाग, कालीपलटन, कृषि मण्डी समेत आस-पास के इलाकों का पानी धन्नातलाई में आता है। यहां से हाउसिंग बोर्ड होते हुए हाइवे पर निकल जाता है।
इसके अलावा छावनी, कैप्टन कॉलोनी समेत हाइवे से जुड़ी एक दर्जन कॉलोनियों का पानी अन्नपूर्णा तालाब में आता है। पुरानी टोंक का पानी छोटा बाजार, महाराणा प्रताप, बाबरों का चौक, मालपुरा दरवाजा, काला बाबा होते हुए मोरिया के नाले से होकर बहीर की ओर जाता है। यहां से वह श्मशान मार्ग होते हुए बनास नदी में जाता है।
शहर में पानी निकास की व्यवस्था रियासत काल में काफी बेहतर थी। पुरानी टोंक और नई टोंक में रियासत काल के समय तीन दर्जन से अधिक कदमी नाले बनाए गए थे।
नालों पर अवरोधक व अतिक्रमण हटाया जाए। नाले थे पहले अब नालियां बन गई है। सुभाष बाजार से लेकर नौशे मियां का पुल तक सड़क लबालब हो जाती है। ऐसे में पानी दुकानों में भर जाता है। इससे व्यापारियों को हर साल नुकसान होता है।
– मनीष बंसल, अध्यक्ष श्रीव्यापार महासंघ टोंक
कई जगह नाले छपे हुए हैं और कई जगह अतिक्रमण भी है। जल्द ही इनके लिए उचित कदम उठाया जाएगा।
– धर्मपाल जाट, आयुक्त नगर परिषद, टोंक