ग्रामीणों की मांग पर वन विभाग ने गांव बहड़ की पहाड़ी के नीचे पिंजरा रख दिया गया, लेकिन बघेरा पिंजरे में कैद नहीं हो पाया। वन विभाग ने पिंजरे में बघेरे के लिए प्रतिदिन शिकार नहीं रखा जाता था, जिससे बघेरा गांव के पशुओं का शिकार कर पहाड़ की गुफा में चला था।
जिससे एक माह से ग्रामीणों में हडकंप मच हुआ था। ग्रामीणों ने बहड़ की पहाड़ी में बघेरे होने के वीडिओ और फोटो वन कर्मियों को दिखाए। जिसके बाद पहाड़ी में खाली पिंजरा रखकर वन कर्मियों ने औपचारिकता पूरी कर ली, लेकिन बघेरा गांव के मवेशियों का शिकार पर शिकार करता रहा।
ग्रामीणों में बढ़ते आक्रोश के चलते आखिर वन कर्मियों को लगातार तीन-चार दिन पिंजरे में शिकार बांधा। शनिवार की रात को पिंजरे में एक बकरा बांधते ही दो घंटे बाद बघेरा पिंजरे में कैद हो गया। बघेरे के पिंजरे में कैद होते ही वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों ने राहत की सांस ली।
वन कर्मियों की सूचना पर क्षेत्रीय वन प्रसार अधिकारी दिनेश दोतानिया गांव बहड़ पहुंचे। बघेरे को देखने के लिए ग्रामीणों का हुजूम उमड़ पड़ा। रेंजर दोतानिया ने उप वन संरक्षक श्रवण कुमार रेड्डी को बघेरे के पिंजरे में कैद होने की सूचना दी। बघेरे के पिंजरे को वाहन से वन रेंज संजय वन लाया गया।
पिछले दो सालों से बघेरे का गांव कांटोली, नोहटा, बस्सी, बारेडा, बहड़, रामनगर, धतूरी, किवाड़ा सहित आसपास के गांवों में मूमेंट रहने और पिछले दो वर्षों में बघेरे की ओर से करीब 55 से अधिक पशुओं का शिकार करने से ग्रामीणों में रोष बढ़ता जा रहा है।
ग्रामीणों की ओर से लगातार बघेरों को पकडऩे के लिए मांग की जा रही है, लेकिन वन विभाग पर कान पर जूं तक नहीं रेंग रही थी। विभिन्न गांवों में बघेरे की ओर से मवेशियों का शिकार करने से ग्रामीण भयभीत है। इसका कारण यह भी था कि बघेरे का लगातार कुनबा बढ़ रहा है, जिससे पशुओं व मवेशियों के शिकार में बढऩे लगे हैं।
दो शावक भी है शनिवार की रात बघेरे के पिंजरे में कैद होने पर गांव बहड़ पहुंचे रेंजर को ग्रामीणों ने बताया कि गांव बहड़ की पहाड़ी में बघेरे के साथ दो शावक भी कई बार देखे गए हैं। जिन्हें जल्दी से पकडकऱ अभ्यारण्य छोडऩे की मांग की। जिस पर रविवार की सुबह कुछ ग्रामीणों के साथ वन रक्षक बद्री जाट व रामराज मीणा ने बहड़ की पहाडिय़ों में ट्रेकिंग कर बघेरे के शावकों को तलाशा। बघेरे की गुफा तक वन कर्मियों ने ग्रामीणों के साथ सर्च ऑपरेशन के तहत शावक के पदचिह्न देखे, लेकिन वह किसी नतीजे पर पहुंच पाए।
गुफा से निकलता है
बघेरे गांव नोहटा व बहड़ की पहाडिय़ों में बनी गुफा से निकल कर रात में पशुओं, मवेशियों, जंगली जानवरों, नील गाय और गांव में घूमने वाले श्वानों का आए दिन शिकार करते जा रहे हैं, लेकिन बघेरों को पकडऩे के लिए दो वर्ष में वन विभाग के अधिकारियों की ओर से पुख्ता योजना नहीं बनाई गई। इससे लगातार बघेरों कुनबा बढ़ाता ही जा रहा है।
नोहटा में तीन बघेरे दिए थे दिखाई
गांव नोहटा की पहाडिय़ों में करीब 6 माह पूर्व शाम समय एक साथ तीन बघेरे दिखाई दिए थे। जिनके वीडिओ और फोटो ग्रामीणों ने वन कर्मियों को दिखाए थे। नोहटा, कांटोली सहित आसपास के ग्रामीणों ने बताया कि नोहटा की पहाड़ी में बनी गुफा में 5-6 बघेरे है। जो रात के अंधेरे में पहाड़ से उतर कर आसपास के गांवों में शिकार करते हंै।
पशु चिकित्सकों ने की जांच रविवार दोपहर निवाई के पशु चिकित्सक डॉ. शिवराज शर्मा डॉ. अविनाश जैन और डॉ. मुकेश मंगल ने संजय वन पहुंचकर बघेरे की स्वास्थ्य जांच की। वन कर्मचारियों को बघेरे के लिए पीने के पानी और खाने के लिए मांस की व्यवस्था के लिए कहा। शिवराज शर्मा ने बताया कि जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी बघेरे को यहां से उपयुक्त स्थान पर छोड़ दिया जाए।
अन्यथा पिंजरे में बाहर निकलने की कोशिश में बघेरा घायल हो सकता है। इधर, टोंक रेंजर व वाइल्ड लाइफ एक्पर्ट संतोष कुमार का कहना है कि पिंजरे में कैद बघेरा मादा है और इसके शावक नहीं हो सकते हैं। इस मादा बघेरे की उम्र करीब चार से साढ़े चार वर्ष तक है।
बघेरे को अभ्यारण्य व जू में भेजने का निर्णय उच्चाधिकारियों की ओर से लिया जाएगा। आसपास वन क्षेत्र में छोडऩे से बघेरा आदमखोर हो सकता है। इधर, क्षेत्रीय वन प्रसार अधिकारी दिनेश दोतानिया का कहना है कि गांव बहड़ में शनिवार की रात बघेरा बकरे का जैसे शिकार करने की कोशिश की तो वह पिंजरे में कैद हो गया। और पिंजरे को रात में ही संजय वन लाकर सुरक्षित रख दिया। उच्चाधिकारियों के निर्देशों पर ही बघेरे को अभ्यारण्य व जू में भेजा जाएगा।