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इंफोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष सुधा मूर्ति बोलीं, फिल्मों में अभिनय आसान नहीं

इंफोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष सुधा मूर्ति बोलीं, फिल्मों में अभिनय आसान नहीं…

Dec 01, 2017 / 08:45 pm

dilip chaturvedi

sudha murthy

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इंफोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष और लेखिका सुधा मूर्ति ने कन्नड़ फिल्म में एक छोटा सा किरदार निभाने के बाद यह पाया है कि अभिनय आसान काम नहीं है। सुधा ने फिल्म ‘उप्पु हुली खारा’ (साल्ट सॉर स्पाइसी ) में एक जज की भूमिका निभाई है, जो राज्य में 24 नवंबर को रिलीज हुई थी। सुधा ने आईएएनएस को बताया, “मुझे लगता है कि फिल्म देखना बहुत अच्छा लगता है लेकिन उसमें अभिनय करना बहुत मुश्किल है।”इस फिल्म में शशि देवराज, मालाश्री, शरथ और धनंजय नजर आएंगे। कोरियोग्राफर से निर्देशक बनें इमरान सरधरिया ने इस दो घंटे की अवधि की फिल्म बनाई है।

सुधा (67) अनिच्छा से निर्माता एम. रमेश रेड्डी की जिद पर फिल्म में दो मिनट की भूमिका करने के लिए सहमत हुईं जिनसे उनकी लंबे समय से जान-पहचान थी। मूर्ति ने कहा, “मैं फिल्म में अभिनय करने के लिए सहमत हुई, क्योंकि रेड्डी फिल्म में मेरे लिए एक छोटी (दो मिनट की) सी भूमिका डालने को लेकर बहुत ही उत्सुक थे।”

फिल्म के दौरान सुधा एक अदालत में बतौर जज की भूमिका में दिखाई देती हैं जहां वह एक मामला सुनने और याचिकाकर्ता और अभियोजक के तर्को के बाद फैसला देती हैं। सॉफ्टवेयर प्रमुख कंपनी इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति की वाइफ सुधा ने कहा, “इस भूमिका के लिए मैंने कोई तैयारी नहीं की थी। मुझे बैठकर दोनों पक्षों की बहस को सुनना था और कुछ लाइनें बोलनी थीं।”

मूर्ति इससे पहले कन्नड़ फिल्म ‘प्रार्थना’ में एक जज की भूमिका निभा चुकी हैं। इसके अलावा वह अपने कन्नड़ उपन्यास ‘रुन’ पर आधारित एक मराठी फिल्म ‘पितरून’ में भी दिखाई दी थीं। सुधा ‘थ्री थूसंड स्टिचेस’, ‘हाउस ऑफ काड्स’, ‘डॉलर बहू’ और ‘हाउ आई टॉट टू माइ ग्रैंडमदर टू रीड’ जैसे कई प्रसिद्ध कन्नड़ उपन्यास लिख चुकी हैं। उन्होंने कहा, “लेखन की प्रक्रिया मेरे लिए शुद्ध आनन्द देने वाली है। लेकिन जब किताब से एक फिल्म बनाई जाती है, तो मेरा मानना है कि यह कई लोगों तक पहुंच सकती है।” सुधा ने कहा, “मैं कहीं भी नहीं जाती हूं पार्टियों या शादियों में भी नहीं। काम करने के बाद मैं अपने समय के हर मिनट पढऩे और लिखने और उसे समर्पित करती हूं।”

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