पत्रिका : आप अन्ना हजारे के आंदोलन की जमीन से देश के राजनीतिक फलक पर पहुंचे। क्या अब भी अन्ना से मिलते हैं? सिंह : अन्ना के सम्पर्क में मैं अब भी हूं। वर्ष-2012 में उनके कई साथियों ने उनका साथ छोड़ दिया था, लेकिन हमने नहीं। बाद में खुद अन्ना ने ही अपने गांव (महाराष्ट्र में) वापस जाकर वहीं काम करने की इच्छा जताई। अब वे वहीं हैं, जहां वे होना चाहते हैं।
पत्रिका : आपने प्रहार (नाना पाटेकर फेम) फिल्म में छोटी सी भूमिका की थी। फिर से किसी फिल्म में काम करना चाहेंगे? सिंह : उस फिल्म में फौज की रियल शूटिंग की गई थी। वो एक संयोग बन गया था, कि मैं फिल्म में शामिल हो गया। अब फिलहाल कुछ सोचा नहीं है कि किसी नई फिल्म में काम किया जाए।
पत्रिका : क्या शौक है, जिसे तमाम व्यस्तताओं के बावजूद पूरा करके ही रहते हैं? सिंह : किताबें पढऩा। हल्के-गंभीर सभी विषयों पर पढ़ता हूं। इसके बिना नहीं रहा जाता। जैसे इन दिनों भी पावर ऑफ पॉसिबिलिटीज और मैन हू रूल्ड इंडिया पढ़ रहा हूं। इनमें से मैन हू रूल्ड इंडिया तीसरी बार पढ़ रहा हूं। पता लग रहा है कि भारत क्यों गुलाम हुआ। हमारी कमजोरियां क्या थी।
पत्रिका : हाल ही आपने विदेशों में फंसे भारतीयों को सुरक्षित घर वापस पहुंचाने में एक हीरो की तरह भूमिका अदा की है। क्या कहेंगे? सिंह : बस ईमानदारी से अपना काम किया है।
पत्रिका : फिटनेस के लिए क्या करते हैं? सिंह : सिर्फ योगासन। वह भी कुछ देर के लिए ही। बस बाकी अपने आप फिट हो जाता है। पत्रिका : आपने एक कामयाब जीवन जीया है। किसे अपना आदर्श मानते हैं?
सिंह : सभी क्षेत्रों में अलग-अलग बहुत से लोग मेरे आदर्श हैं। फौज की बात करूं तो फील्ड मार्शल मानेक शॉ और जनरल करियप्पा मेरे आदर्श हैं। राजनीति में मुझे लगता है कि महात्मा गांधी और सरदार पटेल गजब के लीडर थे।
पत्रिका : फिर भी कोई एक हीरो कौन है? सिंह : सारे गुण किसी एक में मिलना मुश्किल है, लेकिन इस परिप्रेक्ष्य में देखूं तो मुझे लगता है भगवान श्रीकृष्ण मेरे हीरो हैं। वे सर्वगुण सम्पन्न हैं।
पत्रिका : कभी कोई निराशा या गुस्सा? सिंह : फौजी आदमी हूं। चीजों को तय वक्त और नियमानुसार करने का जूनून रहता है। जब ऐसा नहीं होता तब निराशा होती है। पत्रिका : हाल ही ओलम्पिक में साक्षी, सिंधू और दीपा ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। आप भी दो बेटियों के पिता हैं, बेटियों के प्रति देश में कैसा माहौल है?
सिंह : मैं और मेरी पत्नी शुरू से बेटियों को प्रोत्साहित करने में विश्वास रखते हैं। दोनों बेटियां जॉब करती हैं। अब देश में भी तेजी से माहौल बदल रहा है। अभिभावक अब बेटियों के प्रति ज्यादा संवेदनशील और जिम्मेदार बन रहे हैं।