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टीकमगढ़

बकरे पर धूमधाम से निकली बारात, भाभी के साथ हुआ विवाह

टीकमगढ़. हम उम्र दूल्हा-दुल्हन का विवाह, दूल्हा का घोड़ी पर चढ़कर बारात में जाना तो सबने देखा होगा। लेकिन किसी मासूम दूल्हे की बकरे पर बैठकर बारात निकलना और उम्र में कही अधिक बड़ी उसकी भाभी के साथ ही विवाह होना देखना तो दूर सुनकर भी आप हैरान हो जाएंगे। शुक्रवार को शहर के भैरव बाबा मोहल्ले में भी ऐसी ही अनूठी बारात निकली तो लोग देख कर आश्चर्यचकित हो गए।

टीकमगढ़Jan 09, 2025 / 07:01 pm

Pramod Gour

टीकमगढ़. बकरे पर बैठ कर निकलता दुल्हा।

टीकमगढ़. बकरे पर बैठ कर निकलता दुल्हा।

लोहिया समाज में 400 सालों से कर्ण छेदन संस्कार पर चली आ रही प्रथा

टीकमगढ़. हम उम्र दूल्हा-दुल्हन का विवाह, दूल्हा का घोड़ी पर चढ़कर बारात में जाना तो सबने देखा होगा। लेकिन किसी मासूम दूल्हे की बकरे पर बैठकर बारात निकलना और उम्र में कही अधिक बड़ी उसकी भाभी के साथ ही विवाह होना देखना तो दूर सुनकर भी आप हैरान हो जाएंगे। शुक्रवार को शहर के भैरव बाबा मोहल्ले में भी ऐसी ही अनूठी बारात निकली तो लोग देख कर आश्चर्यचकित हो गए।
शुक्रवार को भैरव बाबा मोहल्ला निवासी प्रकाश अग्रवाल के पोते राघव अग्रवाल जब बकरे पर दूल्हा के रूप में सवार होकर निकले तो पूरा घर नाचने-गाने लगा। ढोल की धुन पर उनके परिजनों ने जमकर नाच किया और आतिशबाजी की गई। इसके बाद पूरे मोहल्ले में बारात घूमने के बाद घर में रिश्ते की भाभी से राघव का विवाह कराया गया। उम्र में कही बड़ी भाभी से राघव का विवाह देखकर सभी हैरान होते दिखाई दिए। असल में यह एक परंपरा है जो लोहिया समाज में पिछले 400 सालों से चली आ रही है। प्रकाश अग्रवाल ने बताया कि उनके समाज में घर के बड़े बेटे के कर्ण छेदन के समय पर इस परंपरा का निर्वाहन किया जाता है। जीवन के 16 प्रमुख संस्कारों में से एक कर्ण छेदन संस्कार को पूरे विवाह की तरह आयोजित किया जाता है। इसमें लड़के की रिश्ते की भाभी से उसका विवाह कराया जाता है। यह कर्ण छेदन संस्कार 18 साल की उम्र के पहले करने की परंपरा है। इसके लिए गुरुवार को उनके घर पर विवाह के भोज का भी आयोजन किया गया था। इसमें 2 हजार से अधिक लोगों के भोजन हुए थे।
7 स्थानों से होकर गुजरती है बारात

प्रकाश अग्रवाल के भाई कैलाश अग्रवाल ने बताया इस परंपरा में बारात को 7 प्रमुख स्थानों से निकाला जाता है। इसमें अपने घर से बारात शुरू की जाती है। इसके बाद मंदिर, कुल देवता का दरवाजा और मोहल्ले के घर शामिल किए जाते हैं। इन सात घरों से बारात वापस घर आती है। वह बताते हैं कि यह अनोखी परंपरा उनके यहां पीढिय़ों से चली आ रही है। इस प्रकार का कर्ण छेदन केवल नई पीढ़ी के बड़े बेटे के समय होती है। शेष सभी का सामान्य रूप से संस्कार किया जाता है।

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