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टीकमगढ़

मौन धारण कर निकले मौनिया, मंदिरों व घरों में पहुंच कर किया नृत्य

टीकमगढ़/ओरछा. दीपावली के अगले दिन समूचे बुंदेलखंड में मौनिया नृत्य की परंपरा है। ऐसे में शुक्रवार को पूरे जिले में ग्वालो का वेश रखकर मौनिया की टोलियां निकली। ऐसे में श्रीराम राजा मंदिर ओरछा और शिवधाम बड़ी संख्या में पहुंचे मौनियों ने जमकर नृत्य किया। इसके साथ ही यह लोग घरों में पहुंचे और नृत्य कर लोगों की सुख-शांति की कामना की।

टीकमगढ़Nov 02, 2024 / 06:23 pm

Pramod Gour

ओरछा. श्रीरामराजा मंदिर परिसर में नृत्य करते लोग।

ओरछा. श्रीरामराजा मंदिर परिसर में नृत्य करते लोग।

परंपरा गोवर्धन पूजन कर ग्वाला का वेश धारण कर करते हैं आकर्षक नृत्य

टीकमगढ़/ओरछा. दीपावली के अगले दिन समूचे बुंदेलखंड में मौनिया नृत्य की परंपरा है। ऐसे में शुक्रवार को पूरे जिले में ग्वालो का वेश रखकर मौनिया की टोलियां निकली। ऐसे में श्रीराम राजा मंदिर ओरछा और शिवधाम बड़ी संख्या में पहुंचे मौनियों ने जमकर नृत्य किया। इसके साथ ही यह लोग घरों में पहुंचे और नृत्य कर लोगों की सुख-शांति की कामना की।दीपोत्सव के अगले दिन सामान्य रूप से गोवर्धन की पूजन होती है, लेकिन इस बार गोवर्धन पूजा एक दिन बाद होगी, लेकिन मौनिया नृत्य करने वाली टोलियां शुक्रवार को ही निकली। भगवान श्रीकृष्ण के साथी ग्वालों का वेश धर कर निकले मौनियों की टोलियां सबसे पहले श्रीरामराजा के मंदिर में पहुंची। यहां पर इन मंडलियों ने जमकर आकर्षक नृत्य किया। सबसे पहले बेतवा नदी के तट पर स्नान कर पूजा अर्चना कर श्रीरामराजा सरकार के दरवार में मत्था टेका। फिर अपना नृत्य मंदिर परिसर में प्रस्तुत किया। लाठियों के सहारे, ढोलक, मरीजा, झांझ और नगढिय़ा की धुन पर किए जाने वाले इस आकर्षक नृत्य में कलाकारों ने एक से एक करतब प्रस्तुत किए। इस नृत्य का समूचे बुंदेलखंड में विशेष महत्व माना जाता है। पंडित रजनीश दुबे बताते है कि मौनिया नृत्य खासतौर पर बुंदेलखंड का एक लोकनृत्य है। इस नृत्य को अब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक मंचों पर प्रस्तुत किया जाने लगा है, लेकिन आज भी बुंदेलखंड के अधिकांश गांवों में इस नृत्य की परंपरा देखने को मिल जाती है। मौनिया नृत्य दीवाली के त्योहार के साथ तीर्थ स्थलों पर जाकर करते हैं। लक्ष्मण ङ्क्षसह यादव ने बताया कि यह नृत्य बुंदेलखंड के झांसी, टीकमगढ़ छतरपुर जिले के गांव-गांव में आज भी जीवित है। समय के साथ इसमें कुछ बदलाव जरूर आ गए हैं। यह नृत्य पुरुष प्रधान है, इसमें मात्र पुरुष ही भाग लेते हैं। इस नृत्य का केंद्र वीर रस प्रधान होता है। मौनिया नृत्य में लाठी और डंडों का कौशल संगीत के साथ देखते ही बनता है। मौनिया नृत्य में ग्रामीण लोग रावला को मनौती के रूप में मानते हैं। इसी वजह से इसे मौनिया नृत्य भी कहते है। इसमें सभी कलाकार गोल बनाकर नाचते गाते हैं। इस नृत्य का मुख्य पर्व दीपावली के समय गोवर्धन पूजा के समय होता।
इसी प्रकार पंडित राकेश अयाची बताते हैं कि यह नृत्य कृष्ण एवं उनके साथी ग्वालों का रूपक है। इसे सैरा नृत्य भी कहते हैं। यह सभी कलाकार मंडली के रूप में तीर्थ स्थानों का भ्रमण कर अपने नाच-गाने का प्रदर्शन करते हैं। सभी कलाकारों कीएक खास वेशभूषा होती है। इसमें कलाकार चुस्त परिधान, जांघिया, बनियान और कर्ता धारण करते हैं। कमर में घुंघरुओं की माला पहनते हैं तथा मोरपंख हाथ में और सिर पर धारण करते हैं।
कुण्डेश्वर में पहुंचे मौनिया

इसके साथ ही बड़ी संख्या में यह मंडलियां शिवधाम कुण्डेश्वर पहुंची। यहां पर भगवान के सामने जमकर नृत्य किया। विदित हो कि पूर्व में मौनिया मौन व्रत धारण कर निकलते थे और इसके साथ ही बात करते थे, लेकिन समय के साथ अब इसमें बदलाव आया है और बहुत कम मौनिया मौन धारण कर निकलते है।

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