प्रतिमा का अलौकिक सौंदर्य करता है आकर्षित
भगवान शिव के नटराज मंदिर को चिदम्बरम मंदिर के नाम से भी जाना पहचाना जाता है। यह तमिलनाडु में चिदम्बरम में स्थित है। नटराज मंदिर भगवान शिव के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यहां बनी शिव के नटराज स्वरूप की प्रतिमा का अलौकिक सौंदर्य टूरिस्ट हो या भक्त सभी को आकर्षित करता है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि भगवान शिव ने अपने आनंद नृत्य की प्रस्तुति इसी जगह पर की थी। इस मंदिर में शिव मूर्ति की खासियत यह है कि यहां नटराज आभूषणों से लदे हुए हैं। ऐसी शिव मूर्तियां भारत में बहुत कम ही दिखाई देती है।
शिव और वैष्णव दोनों देवताओं का स्थान
इस मंदिर की बनावट बेहद खास है। इस अनोखे और भव्य मंदिर का क्षेत्रफल 106,000 वर्ग मीटर है। मंदिर में लगे हर पत्थर और खंभों पर भी भगवान शिव के अनोखे स्वरूप को दर्शाया गया है। हर जगह भरतनाट्यम नृत्य की मुद्राएं उकेरी गई हैं। इस नटराज मंदिर में नौ द्वार बनाए गए हैं। वहीं नटराज मंदिर के इसी भवन में गोविंदराज और पंदरीगावाल्ली का मंदिर भी स्थित है। यह मंदिर देश के उन मंदिरों में शामिल है जहां भगवान शिव और वैष्णव दोनों ही देवता एक ही स्थान पर विराजमान हैं।
शिव के नटराज स्वरूप से जुड़ी हर चीज के दर्शन
यहां बड़ी संख्या में शिव भक्त दर्शन के लिए आते हैं। रोचक तथ्य यह भी है कि इस मंदिर में भगवान शिव के नटराज स्वरूप में जुड़ी बहुत सी अनोखी चीजें देखने को मिलती हैं। प्राचीन काल में निर्मित इस मंदिर में आज भी भगवान नटराज के रथ के दर्शन हो जाएंगे। माना जाता है कि इस रथ पर नटराजन साल में सिर्फ दो बार ही चढ़ते थे। आपको बता दें कि यहां मनाए जाने वाले कुछ खास त्योहारों पर यहां आने वाले भक्त इस रथ को खींचते भी हैं। इस मंदिर में बने 5 बड़े सभागार भी लोगों को आकर्षित करते हैं। बताया जाता है कि ये सभागार वही स्थान हैं, जहां भगवान नटराजन अपने सहचरी के साथ फुर्सत के पल बिताते थे।
पार्वती जी ने मान ली थी हार
इस मंदिर को लेकर यहां एक किंवदंती भी है। यह स्थान पहले भगवान श्री गोविंद राजास्वामी का था। एक बार शिव सिर्फ इसलिए उनसे मिलने आए थे कि वह उनके और पार्वती के बीच नृत्य प्रतिस्पर्धा के निर्णायक बन जाएं। गोविंद राजास्वामी निर्णायक बनने के लिए तैयार हो गए। शिव-पार्वती के बीच नृत्य प्रतिस्पर्धा चलती रही। जब काफी देर तक प्रतिस्पर्धा में दोनों में से कोई भी एक-दूसरे से कम नहीं दिखा तो ऐसे में शिव विजयी होने की युक्ति जानने के लिए श्री गोविंद राजास्वामी के पास पहुंच गए। उन्होंने एक पैर से उठाई हुई मुद्रा में नृत्य करने का संकेत दिया। यह मुद्रा महिलाओं के लिए वर्जित थी। ऐसे में जैसे ही भगवान शिव नृत्य की इस मुद्रा में आए तो, पार्वती जी ने हार मान ली। इसके बाद ही शिव जी का नटराज स्वरूप यहां पर स्थापित किया गया।
हैरान कर देते हैं ये वैज्ञानिक फैक्ट
स्थान : दुनिया का केंद्र बिंदु चुंबकीय भूमध्य रेखा-8 वर्षों के शोध के बाद पश्चिमी वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि भगवान नटराज का बड़ा पैर जिस स्थान पर रखा गया है वह दुनिया के चुंबकीय भूमध्य रेखा का केंद्र बिंदु है। इसके अलावा यह 11 डिग्री अक्षांश पर स्थित है, जिसका अर्थ है कि केन्द्रापसारक बल आकाश की ओर निर्देशित है।
महत्व : इसका मतलब है कि यह पृथ्वी के चुंबकीय प्रभावों से खुद को मुक्त करने के लिए एक आदर्श स्थान है। इसे आध्यात्मिक रूप से देखने भर से ही व्यक्ति अपने आप को सांसारिक प्रभावों से मुक्त कर सकता है और हमारी ऊर्जाओं को ऊपर की ओर ले जा सकता है जो हमारी आध्यात्मिक जागृति में सहायता कर सकता है।
तत्व और सत्र : चिदंबरम में नटराज मंदिर पंच भौत में से एक है, यानी 5 तत्वों का प्रतिनिधित्व करने वाले 5 मंदिरों में से एक। इनमें से चिदंबरम आकाश (आकाश) का प्रतिनिधित्व करता है। श्रीकालहस्ती पवन (वायु) को दर्शाता है। कांची एकम्बरेश्वर पृथ्वी (थल) को दर्शाता है। ये सभी 3 मंदिर 79 डिग्री 41 मिनट देशांतर पर एक सीधी रेखा में स्थित हैं।
महत्व: ये स्थान रणनीतिक रूप से विभिन्न ऊर्जा तत्वों से मानवीय संवेदनाओं को जोड़कर महानता प्राप्त करने के लिए हमारी ऊर्जा का मार्गदर्शन करने वाले हैं।
वास्तुकला: मंदिर की वास्तुकला को पूर्व चोलन माना जाता है और इसकी कल्पना 200 ईसा पूर्व के आसपास के सबसे महान योग गुरु, पतंजलि ने की थी। मंदिर की छत जहां एक व्यक्ति बैठ सकता है और ध्यान कर सकता है। उसके पास 21600 सोने की चादरें हैं, जो एक मानव द्वारा प्रतिदिन ली जाने वाली सांसों की संख्या को दर्शाती हैं और ये सोने की चादरें 72000 सोने की कीलों का उपयोग करके जुड़ी होती हैं जो मानव शरीर में कई संख्या में नसों (नाडिय़ों) को दर्शाती हैं। यहां तक कि पोन्नम्बलम को डिजाइन करने में अंकशास्त्र का भी ध्यान रखा गया है, जो दिल का प्रतिनिधित्व करता है और बाईं ओर झुका हुआ है।
महत्व: मंदिर की वास्तुकला हमारे हृदय और तंत्रिका तंत्र के संबंध को दर्शाती है। सरल शब्दों में, हमारी सांस और नसें जो सोने की तरह शुद्ध और मूल्यवान हैं। हमारे शरीर का लौकिक संबंध अच्छी तरह से दर्शाया गया है।
स्वर्ण छत्र पर 9 कलश: ये 9 कलश 9 प्रकार की शक्ति या ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं। 4 स्तंभों में 4 का प्रतिनिधित्व करते हुए कानागाभास पकड़े हुए हैं। अर्थ मंडपम में 6 स्तंभों में 6 प्रकार के सशस्त्र का प्रतिनिधित्व किया गया है। आसन्न मंडपम में 18 स्तंभ 18 पुराणों को दर्शाते हैं।
महत्व : मंदिर शास्त्रों का प्रतीक है जिसका अर्थ है कि इसके माध्यम से सच्चा ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इस विशाल मंदिर परिसर की वास्तुकला में उनके कद के अनुसार शास्त्रों के महत्व को भी दर्शाया गया है।
अनूठी प्रतिमा : इस मंदिर की एक अनूठी विशेषता नटराज की छवि है। इसमें भगवान शिव को नृत्य भरतनाट्यम करते हुए भगवान के रूप में दर्शाया गया है और यह उन कुछ मंदिरों में से एक है जहां शिव एक मानवशास्त्रीय मूर्ति के स्वरूप में दर्शाया गया है।
महत्व : भगवान नटराज का लौकिक नृत्य भगवान शिव द्वारा बनाए गए ब्रह्मांड की गति का प्रतीक है।
शिव के 3 रूप: सोने की छत वाला चरण चिदंबरम मंदिर का गर्भगृह है और इसमें भगवान तीन रूपों में विराजमान हैं, एक मूर्त रूप – भगवान नटराज की एक आकृति के रूप में नृशंस रूप, जिन्हें सकल थिरुमनी कहा जाता है। दो – अर्ध रूप – चंद्रमौलेश्वरर के क्रिस्टल ***** के रूप में अर्ध-मानवाशास्त्रीय रूप, सकला निश्क्कल थिरुमनी और तीन – निराकार- चिदंबरम रहस्याम में अंतरिक्ष के रूप में, गर्भगृह के भीतर एक खाली स्थान, निशंक थिरुमनी के स्वरूप में स्थापित हैं।
आनंद तांडव मुद्रा- मंदिर को लोटस हार्ट ऑफ यूनिवर्स में स्थित माना जाता है। विराट ह्रदय पद्म स्थलम। यह आदर्श स्थान है जहां भगवान शिव आकाशीय नृत्य करते हैं और सब कुछ नियंत्रित करते हैं।
1000 साल पुरानी वेजीटेबल डाई पेंटिंग
थिलाई नटराज मंदिर की छत पर आप 1000 साल पुरानी डाई पेंटिंग देख सकते हैं। इन चित्रों में मंदिर और ऋषियों से संबंधित उन विभिन्न किंवदंतियों और कहानियों की कथाएं हैं, जो मोक्ष प्राप्त करते हैं और आत्म बोध से मुक्त हो गए।
ये भी जानें
-नटराज की मूर्ति एक महान तमिल ऋषि बोगर ने बनाई थी। मूर्ति को सोने और तांबे के मिश्रण से बनाया गया है। वह सिर्फ सोने से मूर्ति बनाने वाले थे, लेकिन अगर मूर्ति इस तरह से बनती तो आरती के दौरान ऐसी प्रकाश उत्सर्जित करती जो भक्तों की आंखों को अंधा कर सकती थी। नटराज के पैरों के नीचे दैत्य मुयालका, जिसे अप्समारा भी कहा जाता है दर्शाता है कि अहंकार और अज्ञान उनके पैरों के नीचे है। एक हाथ में आग विनाश की शक्ति है, जिसका अर्थ है बुराई का नाश करने वाला, जीवन का उद्धार करने वाला है। पीछे स्थित रिंग ब्रह्मांड को दर्शाता है। उनके हाथ में डमरू जीवन की उत्पत्ति के लिए प्राणमय किरण का प्रतीक है। नटराज अपनी दिव्य मुस्कान के साथ ब्रह्माण्ड के क्रम और संतुलन को बनाए रखने के लिए अनंत शांति के साथ एक नृत्य करते हैं। गर्भगृह में, आप भगवान शिव की मूर्ति को अपने आनंद तांडवम मुद्रा में देख सकते हैं, उसके पीछे देवी पार्वती को देखना बहुत कठिन है।
थिल्लई नटराज मंदिर कैसे पहुंचें यहां
मंदिर पांडिचेरी के दक्षिण में 78 किमी और चेन्नई से 235 किलोमीटर दूर है। यहां आप रेल मार्ग से, हवाई मार्ग से पहुंच सकते हैं। वहीं टैक्सी और बसों के माध्यम से भी यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।
ये भी पढ़ें: यहां है दुनिया की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा, 50 हजार लोगों ने 10 साल में की है तैयार