यह मस्जिद लखनऊ के बड़े इमामबाड़े में स्थित है। यहां पर गैर मुस्लिम लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं है। मस्जिद परिसर के आंगन में दो ऊंची मीनारें भी हैं। बताया जाता है कि यहां विश्व-प्रसिद्ध भूलभुलैया बनी है, जो अनचाहे प्रवेश करने वाले लोगों की रास्ता रोकती है।
अपनी भव्यता और नक्काशी के लिए दुनियाभर में मशहूर लखनऊ की आसिफी मस्जिद की बुनियाद 1784 में नवाब आसिफ-उद-दौला ने रखी थी। बताया जाता है कि इसका छत बिना किसी बीम के ढली है। जानकार बताते हैं कि एक दशक से भी ज्यादा समय तक अवध के लोग भयंकर अकाल की चपेट में थे।
बताया जाता है कि नवाब आसिफ-उद-दौला ने अकाल और भुखमरी से जनता को निजात दिलवाने के लिए आसिफी मस्जिद का निर्माण करवाना कार्य शुरू करवाया था ताकि यहां रहने वाले लोगों को खाने की समस्या से राहत मिल सके। बताया जाता है कि इसके निर्माण में लगभग 13 साल का समय लगा था।
27 साल बाद अदा की गई नमाज यहां लगभग 27 साल बाद नमाज अदा की गई थी। दरअसल, 1857 की क्रांति से लेकर 1884 तक इस मस्जिद पर अंग्रेजों का कब्जा रहा। अंग्रेजी सरकार इसका इस्तेमाल गन पाउडर और गोला बारूद रखने के लिए करती थी। बताया जाता है कि लगभग 27 साल बाद इसे अंग्रेजों से मुक्त करवाया गया, तब यहां नमाज अदा हुई।
आज की तारीख में यहां पर लखनऊ शहर की सबसे बड़ी जुमे की नमाज अदा की जाती है। ईद और बकरीद में बड़ी संख्या नमाजी यहां नमाज अदा करने आते हैं।