ऐसा ही एक मंदिर देवभूमि उत्तराखंड में भी मौजूद है साथ ही इस क्षेत्र में नागों को विशेष महत्व भी दिया जाता है। उत्तराखंड के कई मंडलों में नागदेवता को लोकदेवता के रूप में भी पूजा जाता है। यहां शेषनाग देवता से लेकर कालियानाग और उसके समस्त परिवार की भी पूजा होती है। इसी के चलते देवभूमि उत्तराखंड में शेषनाग का एक विशेष मंदिर भी मौजूद है, तो वहीं बद्रीनाथ धाम में शेषनाग की आंख भी बताई जाती है।
देवभूमि शेषनाग देवता मंदिर (Sheshnag Temple in Uttarakhand) –
दरअसल देवभूमि उत्तराखंड में शेषनाग देवता मंदिर उत्तरकाशी बड़कोट तहसील के कुपड़ा गांव में स्थित है। यह गांव यमुनोत्री धाम के निकट यमुना घाटी में स्थित है। स्यानचट्टी से 6 किमी वाहन द्वारा और लगभग 3 किलोमीटर पैदल चलने के बाद इस भव्य मंदिर में पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर बहुत भव्य और अद्भुत कलाकारी का नमूना है। बताया जाता है कि 2008 इस मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया गया। देवदार की लकड़ी और सूंदर पत्थरों को तराश कर बनाया गया यह मंदिर रमणीय है।
शेषनाग देवता पर कुपड़ा गांव के साथ साथ बाहरी लोगों की भी अगाध आस्था है। यहां हरवर्ष नागपंचमी को भक्ति और श्रद्धा का अगाध सैलाब उमड़ता है। कुपड़ा गांव के बारे में कहा जाता है कि यहां करीब 600 लोगों की आबादी है। इस गांव के लोगों ने 30 साल पहले नागदेवता को साक्षी मानकर शराब न पीने की कसम खाई, तब से ये लोग शराब को हाथ तक नहीं लगाते हैं।
गांव के लोगों का मानना है कि यदि वे शराब को हाथ लगाएंगे तो शेषनाग देवता नाराज हो जाएंगे और तब से आज तक लोग इस कसम का पालन कर रहें हैं। इसके अलावा कुंसला ,त्रिखाली , ओजली आदि आसपास के गावों में इस परम्परा का निर्वाहन किया जाता है। कुपड़ा गांव और आस पास के गावों में शराब पीने के साथ साथ पिलाना भी बंद है। मेहमाननवाजी या दावत में यहां के लोगों द्वारा घी,दूध, दही ,छास परोसा जाता है।
लगता है भव्य मेला ( Nagpanchami in Uttarakhand )
हिन्दू धर्म के पवित्र सावन माह की पंचमी के दिन नागपंचमी पर्व के उपलक्ष्य में भव्य मेले का आयोजन होता है। देवडोलियों के साथ लोकनृत्य तांदी की धूम रहती है। गांव के साथ साथ बाहर के लोग भी यहां मेले में हर्षोउल्लास से भाग लेते हैं। मेले में दूध दही की होली खेली जाती है।
अपने गांव,परिजनों और पशुओं की खुशहाली की कामना के साथ ,गांव के लोग अपनी गाय और भैसों का दूध ,दही ,मख्खन और छाछ ,नाग देवता को चढ़ाते हैं। यहां मेले के दिन पारम्परिक लोक नृत्यों और लोकगीतों का आयोजन भी किया जाता है। इस अवसर पर भक्त देवता के साथ साथ जाखेश्वेर महादेव और शमेंश्वेर देवता का आशीर्वाद भी लेते हैं।