Murugan Ke Dham: धार्मिक ग्रंथों में भगवान शिव को अजन्मा और एक मात्र संपूर्ण परिवार का उदाहरण बताया गया है। इन्हीं सदाशिव और इनकी आदि शक्ति पार्वती के पुत्र स्कंद की कहानी स्कंद पुराण में बताई गई है। इनके अन्य नाम मुरुगन और सुब्रह्मण्यम हैं।
मान्यता है कि राक्षस तारकासुर के शिव पुत्र के हाथों मौत का वरदान मांगने की वजह से स्कंद का जन्म हुआ। बाद में घटना चक्र ऐसा बदला कि कार्तिकेय दक्षिण में तमिलनाडु आ गए और यहीं निवास स्थान बना लिया। इन्हीं निवास स्थानों को मुरुगन के धाम कहा जाता है, जहां भगवान कार्तिकेय के मंदिर बने हैं।
इनमें से 6 प्रमुख हैं, भगवान मुरुगन के इन छह आवास को आरुपदै विदु के नाम से जाना जाता है। यहां रोजाना बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। आइये जानते हैं दक्षिण भारत में मुरुगन के धाम कहां-कहां हैं और इनकी कहानी क्या है।
तमिलनाडु में भगवान मुरुगन के प्रसिद्ध मंदिर
1.पलनी मुरुगन मंदिर (कोयंबटूर से 100 किमी पूर्वी-दक्षिण में स्थित) 2. स्वामीमलई मुरुगन मंदिर (कुंभकोणम के पास) 3. तिरुत्तनी मुरुगन मंदिर (चेन्नई से 84 किमी दूर) 4. पज्हमुदिर्चोलाई मुरुगन मंदिर (मदुरई से 10 किमी उत्तर में स्थित) 5. श्री सुब्रहमन्य स्वामी देवस्थानम, तिरुचेंदुर (तूतुकुड़ी से 40 किमी दक्षिण में स्थित) 6. तिरुप्परनकुंद्रम मुरुगन मंदिर (मदुरई से 10 किमी दक्षिण में स्थित)
7. मरुदमलै मुरुगन मंदिर (कोयंबतूर का उपनगर) एक और प्रमुख तीर्थस्थान हैं। 8. कर्नाटक के मंगलौर शहर के पास कुक्के सुब्रमण्या मंदिर भी भगवान मुरुगन के भक्तों का प्रिय तीर्थ स्थान है, लेकिन मरुदमलै मुरुगन मंदिर समेत ये दोनों मंदिर भगवान मुरुगन के छह निवास स्थान का हिस्सा नहीं हैं।
ये भी पढ़ेंः ये हैं भगवान कार्तिकेय के प्रमुख मंदिर, खूबसूरती के लिए दुनिया में मशहूर
आने वाली है स्कंद षष्ठी
भक्त हर महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान कार्तिकेय का जन्मोत्सव मनाते हैं। इस दिन व्रत उपवास रखते हैं। इनमें सबसे खास षष्ठी कार्तिक चंद्रमास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी होती है। श्रद्धालु इस दौरान छह दिन का उपवास करते हैं जो सूरसम्हाराम तक चलता है। सूरसम्हाराम के बाद अगले दिन तिरु कल्याणम मनाया जाता है। इसके अगले माह की स्कंद षष्ठी सुब्रह्मण्यम षष्ठी या कुक्के सुब्रह्मण्यम् षष्ठी के नाम से जानी जाती है। इधर, पौष माह की स्कंद षष्ठी अगले साल रविवार 5 जनवरी 2025 को मनाई जाएगी।प्रमुख मुरुगन मंदिर की कहानी
पलनी मुरुगन मंदिर (Palani Murugan Temple)
तमिलनाडु के पलनी मुरुगन मंदिर को पलनी दण्डायुधपाणि मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इसे मुरुगन स्वामी के 6 धामों में से एक माना जाता है। यह पलनी में शिवगिरि के शिखर पर स्थित है। इसमें मुरुगन की मुख्य मूर्ति विषैली जड़ी बूटियों का उपयोग करके बोग सिद्धार द्वारा बनाई गई है जिसकी उपस्थिति से भी लोग मर सकते हैं।धार्मिक साहित्य के अनुसार एक समय की बात है महर्षि नारद ने भगवान शिव और माता पार्वती को ज्ञानफलम उपहार में दिया। भगवान शिव ने इसे अपने दोनों पुत्रों भगवान गणेश और कार्तिकेय में से किसी एक को देने का निर्णय लिया और शर्त रखी कि जो भी सृष्टि की परिक्रमा शीघ्रता सबसे पहले करेगा, उसे यह फल मिलेगा।
इसके बाद कार्तिकेय स्वामी अपने वाहन मोर से परिक्रमा के लिए निकल गए, वहीं गणेशजी ने माता पिता को ही संसार मानकर कार्तिकेय से पहले ही परिक्रमा पूरी कर ली। भगवान शिव ने यह फल गणेशजी को दे दिया, लेकिन कार्तिकेय इस फैसले से संतुष्ट नहीं हुए और कैलाश छोड़कर पलनी के शिवगिरि पर्वत पर निवास करने लगे। यहां ब्रह्मचारी मुरुगन स्वामी बाल रूप में विराजमान माने जाते हैं।
स्वामीमलई मुरुगन मंदिर (Swamimalai Temple)
यह मंदिर तमिलनाडु के कुंभकोणम के पास है। यहां कार्तिकेय के बालरूप की पूजा की जाती है। यहां इन्हें बालामुर्गन के नाम से भी जानते हैं। पहाड़ी पर स्थित मंदिर तक पहुंचने के लिए 60 सीढ़ियां पार करनी होती हैं। यह सीढ़ियां वर्ष चक्र को दिखाती हैं। यह मंदिर मरुगन के अन्य मंदिरों से काफी अलग है। क्योंकि यहां मुरुगन मोर नहीं एरावत हाथी पर सवार रहते हैं। कहा जाता है भगवान इंद्र ने एरावत उन्हें भेंट किया था। माता मीनाक्षी (पार्वती) और पिता शिव (सुंदरेश्वर) का मंदिर भी पहाड़ी के नीचे स्थित है।मान्यता के अनुसार शिव पुत्र मुरुगन ( कार्तिकेय) ने इसी स्थान पर अपने पिता के प्रणव मंत्र ॐ का उच्चारण करते थे। इसीलिए इस मंदिर का नाम स्वामीनाथ स्वामी मंदिर रखा गया है। किंवदंती के अनुसार सृष्टि निर्माता ब्रह्माजी ने शिवजी के निवास स्थान कैलाश पर्वत की यात्रा करते समय मुरुगन (भगवान शिव के पुत्र) का अनजाने में ही अपमान कर दिया था। इससे बालक मुरुगन ब्रह्माजी पर क्रोधित हो गए और उन्होंने उनसे पूछ लिया कि कैसे उन्होंने जीवित चीजों की रचना की।
इस पर ब्रह्मा जी ने जवाब दिया कि वेदों की सहायता से और पवित्र प्रणव मंत्र ॐ का जाप करना शुरू किया। उसी समय मुरुगन ने ब्रह्मा जी को रोका और उनसे प्रणव मंत्र का अर्थ बताने को कहा। लेकिन ब्रह्माजी जवाब नहीं दे पाए। इस पर गुस्साए मुरुगन ने अपनी बंधी हुई मुट्ठी से हल्के से ब्रह्मा जी के माथे पर प्रहार कर दिया और उन्हें कैद कर लिया। इसके बाद मुरुगन ने स्वयं सृष्टि के रचना की जिम्मेदारी संभाल ली। इस पर देवता विष्णु जी के पास पहुंचे और सहायता मांगी। उन्होंने सभी को शिवजी के पास भेज दिया।
देवताओं के अनुरोध पर शिवजी मुरुगन के पास आए और ब्रह्माजी को मुक्त करने के लिए कहा। लेकिन मुरुगा ने बात मानने से मना कर दिया और कहा कि उन्हें प्रणव मंत्र ॐ का अर्थ ही नहीं पता। इस पर शिवजी ने मुरुगन से अर्थ बताने के लिए कहा, उन्होंने अर्थ बता दिया।
इसी समय उन्होंने अपने पुत्र को स्वामीनाथ स्वामी नाम दे दिया, जिसका अर्थ है भगवान शिव के शिक्षक। इसीलिए यहां भगवान शिव के पुत्र मुरुगन का मंदिर पहाड़ी के शीर्ष पर जबकि शिवजी का मंदिर पहाड़ी के निचले भाग में है। कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार स्वामीमलई वही स्थान है जहां बाल्यावस्था में मुरुगन ने शिवजी को प्रणव मंत्र का अर्थ समझाया था।