ऐसे में आज गुरुवार को हम आपको भगवान विष्णु के एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं। जो न केवल अद्भुत है, बल्कि यहां भगवान विष्णु की एक मूर्ति वर्षों से एक तालाब में निद्रा की मुद्रा में है।
दरअसल आज हम जिस मंदिर की हम बात कर रहे हैं, वह नेपाल के काठमांडू से 8 किलोमीटर दूर शिवपुरी पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। यह विष्णु भगवान का मंदिर है। मंदिर का नाम बुदानिकंथा है।
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मंदिर को लेकर ऐसी कथा है कि यह मंदिर राज परिवार के लोगों के शापित है। शाप के डर की वजह से राज परिवार के लोग इस मंदिर में नहीं जाते।
बताया जाता है कि यहां के राज परिवार को एक शाप मिला था। इसके मुताबिक अगर राज परिवार का कोई भी सदस्य मंदिर में स्थापित मूर्ति के दर्शन कर लेगा, तो उसकी मौत हो जाएगी। इस शाप के चलते ही राज परिवार के लोग मंदिर में स्थापित मूर्ति की पूजा नहीं करते।
राज परिवार को मिले शाप के चलते बुदानिकंथा मंदिर में तो राज परिवार का कोई सदस्य नहीं जाता।
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लेकिन मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति का ही एक प्रतिरूप तैयार किया गया। ताकि राज परिवार के लोग इस मूर्ति की पूजा कर सकें इसके लिए ही यह प्रतिकृति तैयार की गई।
बुदानिकंथा में श्रीहरि एक प्राकृतिक पानी के सोते के ऊपर 11 नागों की सर्पिलाकार कुंडली में विराजमान हैं। कथा मिलती है कि एक किसान द्वारा काम करते समय यह मूर्ति प्राप्त हुई थी। इस मूर्ति की लंबाई 5 मीटर है। जिस तालाब में मूर्ति स्थापित है उसकी लंबाई 13 मीटर है। मूर्ति में विष्णु जी के पैर एक-दूसरे के ऊपर रखे हुए हैं। वहीं नागों के 11 सिर भगवान विष्णु के छत्र बनकर स्थित हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय विष निकला था, तो सृष्टि को विनाश से बचाने के लिए शिवजी ने इसे अपने कंठ में ले लिया था। इससे उनका गला नीला पड़ गया था।
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इसी जहर से जब शिवजी के गले में जलन बढ़ने लगते तब उन्होंने उत्तर की सीमा में प्रवेश किया। उसी दिशा में झील बनाने के लिए त्रिशूल से एक पहाड़ पर वार किया इससे झील बनी।
मान्यता है कि इसी झील के पानी से उन्होंने प्यास बुझाई। कलियुग में नेपाल की झील को गोसाईकुंड के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि बुदानीकंथा मंदिर का पानी इसी गोसाईकुंड से उत्पन्न हुआ था। मान्यता है कि मंदिर में अगस्त महीने में वार्षिक शिव उत्सव के दौरान इस झील के नीचे शिवजी की भी छवि देखने को मिलती है।