सूरजपुर. New laws: 1 जुलाई से देशभर में 3 नए आपराधिक कानून अमल में आ चुके है। इन कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन, विभिन्न पहलुओं से मीडिया को अवगत कराने गुरुवार को आयोजित कार्यक्रम में कलेक्टर रोहित व्यास व एसएसपी एमआर आहिरे द्वारा नए कानून (New laws) के बारे में जानकारी देते हुए इस विषय पर चर्चा भी की। इस दौरान कलेक्टर ने कहा कि 1 जुलाई से नवीन तीनों कानून के तहत कार्य किए जा रहे हैं। पुराने कानून की जगह अब नए कानून लागू हो चुके हैं, इसकी जानकारी समस्त लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी हम सभी की है। इसमें प्रमुख रूप से मीडिया की अहम भूमिका जुड़ी हुई है। आज अधिक संख्या में लोग सोशल मीडिया, समाचार पत्रों को पढक़र जागरूक हो रहे है, इसकी गति को और तेज करने की आवश्यकता है। उन्होंने सभी को इस दिशा में सहयोग करने की अपील की।
एसडीओपी सूरजपुर नंदिनी ठाकुर ने नए कानून के तहत जांच करने की शक्ति के बारे में बताया और कहा कि पुलिस को किसी मामले की जांच करने का अधिकार प्राप्त है। पुलिस मामले से जुड़े सबूतों, बयानों और वस्तुओं को भी इक_ा कर सकती है। साथ ही न्यायालय पुलिस को मामले की जांच करने के लिए आदेशित कर सकती हैं।
बीएनएसएस में इसका जिक्र चैप्टर 13 के सेक्शन 173 से लेकर 196 तक है। बीएनएसएस के सेक्शन 43(3) के तहत पुलिस अधिकारी अपराध की प्रकृति और गंभीरता को ध्यान में रखते हुए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय या ऐसे व्यक्ति को अदालत में पेश करते समय हथकड़ी का इस्तेमाल कर सकते हंै।
इस दौरान सीएसपी एसएस पैंकरा, एसडीओपी प्रेमनगर नरेन्द्र सिंह पुजारी, एसडीओपी प्रतापपुर अरूण नेताम, डीएसपी आजाक पीडी कुजूर, डीएसपी मुख्यालय महालक्ष्मी कुलदीप सहित अन्य लोग उपस्थित थे।
एसएसपी एमआर आहिरे ने नए कानून (New laws) के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि नए कानूनों में ऐसे बहुत से प्रावधान हैं, जो पुलिस को पहले से ज्यादा ताकतवर बनाते हैं। मसलन पुलिस अब आरोपी को 90 दिन तक हिरासत में रख सकती है, पहले ये अवधि 15 दिन थी। पुलिस का प्रमुख काम अपराध होने से पहले ही रोकना और कानून व्यवस्था बनाए रखना है।
बीएनएसएस के चैप्टर 13 के सेक्शन 173 में प्रावधान है कि पुलिस अधिकारी को किसी संगीन मामले की शिकायत मिलने पर प्रथम सूचना पत्र लिखने से पहले अपने सीनियर ऑफिसर से अनुमति लेकर 14 दिन की प्राथमिक जांच करनी होगी। यानी पुलिस अधिकारी को 14 दिन का समय मिलेगा, इसमें वो तय करेगा कि मामले में प्रथम दृष्टया केस बनता है या नहीं।
स्मार्ट फोन, लैपटॉप अब सबूत के तौर पर परिभाषित
एएसपी संतोष महतो ने बताया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और साक्ष्य अधिनियम के तहत जांच के दौरान पुलिस किसी भी आरोपी को उसके डिजिटल डिवाइस दिखाने और सौंपने के लिए बाध्य कर सकती है। नए कानूनों में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल डिवाइस यानी मोबाइल, स्मार्टफोन, लैपटॉप आदि को सबूत के तौर पर परिभाषित किया गया है।
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