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सुलतानपुर से वर्ष 2014 में चुनाव लड़ने आये पूर्व सांसद वरुण गांधी ने बाध उद्योग को बढ़ावा देने और बाध उद्योग की पहचान देश भर में कराने एवं बाध कारीगरों को बाध मंडी बनवाने का भरोसा दिया था, लेकिन 5 साल बीत जाने के बाद भी बाधमंडी नहीं बन सकी। अलबत्ता सांसद वरुण गांधी ने बाध रखने के लिए गोदाम बनवा दिया। अब वह गोदाम अनुपयोगी एवं निष्प्रयोज्य है, क्योंकि बाद बाध विक्रेताओं को बैठने की जगह नहीं है।बाध कारीगर बड़ी मेहनत से तो बाध तैयार करते हैं, लेकिन उसे बेचने में और इन्हें और भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। साप्ताहिक बाजार मंगलवार व शनिवार को शहर में लगती है। उस दिन पूरे जिले भर से बाध रिक्शे व वाहनों पर लादकर शहर की मंडी में लाए जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्र की बाजारों में भी व्यवसायी इसकी खरीद-फरोख्त करते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा लाभ आढ़तियों को होता है। इसे बनाने वाले बाध मंडी में आढ़तियों के हाथ बेचने को मजबूर होते हैं। यही कारण है कि करीब 70 रुपये किलो की दर से यहां बिकने वाला बाध 50 रुपये में खरीदकर आढ़तिये पड़ोस के प्रांतों में ज्यादा दामों में बेचते हैं।
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बाध निर्माण प्रक्रियाबाध कारीगर जंगलों से कच्चा माल कांसा, सरपत व भरूही काटकर लाते हैं। पत्तियों को डंठलों से अलग कर थोड़ा सुखाते हैं। सूख जाने के बाद छोटी पोटली बांध कर लकड़ी की मुंगरी से पिटाई की जाती है। रेशा बन जाने के बाद पानी में भिगोकर हाथ से बरना प्रारम्भ किया जाता है। प्रायः सुबह शाम एक महिला या बच्चे दो बाध बर पाते हैं। जब 5-6 बाध यानी 2-3 किलो हो जाता है तो फिर पानी में भिगोकर चर्खी के सहारे जिसमें एक महिला चर्खी चलाती है, दूसरा बाध का छोर पकड़ता है, ऐठन दिया जाता है। सूख जाने के बाद पेड़ की डाली पर माज कर बाध को चिकना बनाया जाता है। तत्पश्चात बाजार की मांग के अनुसार पिडी या लच्छी बनाई जाती है। बाध कारीगर गांव के करीबी बाजारों में बिक्री के लिए जाते हैं। जहां पर कुछ गांव के लोग चारपाई बुनने के लिए खरीदते हैं। शेष गंवई व्यापारी इनकी गरीबी व मजबूरी का लाभ लेकर मनमाने भाव पर खरीदते हैं। घर का खर्च चलाने के लिए कारीगर बाध को औने-पौने दामों में बेचने को मजबूर हो जाते हैं।
सुलतानपुर जिले के हेमनापुर, बरासिन, रामपुर, हलियापुर, कांपा, नौगवांतीर, मिठनेपुर, भंडरा, चंदौर, अगई, मुडुुआ सड़ाव, चंद्रकला, नीरसहिया, कटावां, महमूदपुर, मऊघड़वा, वलीपुर, आमकोल, अंगनाकोल, इमिलिया, कबरी, चुनहा, टेढुई, ओदरा, सैदपुर, टांटियानगर, मोलनापुर, भोएं, कठार, सिरवारा, बहाउद्दीनपुर, सुरौली, बेलहरी, वजूपुर, बरगदवा, करोमी, बभनगवां आदि दर्जनों गांवों में यह व्यवसाय वर्षो से फल-फूल रहा है।
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अब मेनका गांधी से उम्मीदें
निषादों के नेता एवं मोस्ट कल्याण संस्थान के निदेशक श्यामलाल निषाद ने कहा कि आजादी के बाद से ही सभी पार्टियों के नेताओं ने निषादों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है। सभी ने बाधमंडी बनवाने का वादा किया, लेकिन बनवाया किसी ने नहीं। अब सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी से अपेक्षा है कि देर-सवेर वह निषादों की सुध लेंगी। क्योंकि, लोकसभा क्षेत्र में एक लाख से अधिक मतदाता की संख्या वाले निषादों ने इस बार के लोकसभा चुनाव में मेनका गांधी को ही वोट किया था।