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शहादत व शौर्य की गाथा सुनाता है मंदिर भारतवासियों की हुसैनीवाला को भारतीय क्षेत्र में जोडऩे की प्रबल इच्छा बन रही। इसी के दृष्टिगत 20वीं सदी के छठे दशक में भारत-पाक की सरकारों के बीच क्षेत्रीय हस्तांतरण के लिए
स्वर्णसिंह-शेख समझौता हुआ। इस समझौते के तहत हुसैनीवाला क्षेत्र तो फिरोजपुर के साथ मिला दिया गया लेकिन इसके बदले में फाजिल्का के निकटवर्ती ग्रामीण क्षेत्र व सुलेमानकी हैड पाकिस्तान को दे दिए गए।
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यहां शहादत के किस्से जगाते हैं देशभक्ति का जज्बा इस भौगोलिक बदलाव के कारण अंतरराष्ट्रीय सीमा फाजिल्का के बिलकुल पास आ गई। इतना ही नहीं फाजिल्का सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्र तीन ओर से पाकिस्तान से घिर गए। इसका सैन्य दृष्टिकोण से
पाकिस्तान को फायदा हुआ। पाकिस्तान ने 1965 व 1971 के युद्ध के दौरान इस क्षेत्र पर कब्जा करने दुस्साहस किया। लेकिन भारतीय सैनिकों के साहस के आगे उसकी एक नहीं चली। लेकिन इस भीषण युद्ध में काफी सैनिक शहीद हुए। इसी कारण आसफवाला में यह युद्ध स्मारक है।
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शहीदों की याद में यहां हर साल लगता है मेला जानकार युद्ध में इतने शहीद होने के पीछे भौगोलिक बदलाव को बड़ा कारण मानते हैं। ब्रॉशर में तो यहां तक कहा गया है कि
हुसैनीवाला का स्मारक लेने की एवज में देश को भारी मूल्य चुकाना पड़ा और कालांतर में आसफवाला में एक ओर स्मारक का निर्माण हुआ तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।