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श्री गंगानगर

सरकारी उदासीनता तले दफन रंगमहल की प्राचीन इतिहास

सूरतगढ़. सरकारी उदासीनता के चलते सूरतगढ़ से मात्र सात किलोमीटर दूर गांव रंगमहल की सभ्यता मिट्टी में दफन होकर रह गई है। गांव के थेहड़ की खुदाई में प्राचीन देवी देवताओं की नक्काशीयुक्त मूर्तियां सहित अन्य सामान मिला। लेकिन अभी भी खुदाई का कार्य बाकी है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की ओर से ऐतिहासिक थेहड़ पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। इस वजह सभ्यता उभरकर सबके सामने नहीं आ रही है। विभाग अगर विशेष ध्यान दें तो यह भारत का प्रमुख पुरातात्विक पर्यटन स्थल बन सकता है।

श्री गंगानगरDec 29, 2024 / 12:04 pm

Jitender ojha

सूरतगढ़. सरकारी उदासीनता के चलते सूरतगढ़ से मात्र सात किलोमीटर दूर गांव रंगमहल की सभ्यता मिट्टी में दफन होकर रह गई है। गांव के थेहड़ की खुदाई में प्राचीन देवी देवताओं की नक्काशीयुक्त मूर्तियां सहित अन्य सामान मिला। लेकिन अभी भी खुदाई का कार्य बाकी है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की ओर से ऐतिहासिक थेहड़ पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। इस वजह सभ्यता उभरकर सबके सामने नहीं आ रही है। विभाग अगर विशेष ध्यान दें तो यह भारत का प्रमुख पुरातात्विक पर्यटन स्थल बन सकता है।
जानकारी के अनुसार गांव रंगमहल की थेहड़ की खुदाई का कार्य वर्ष 1916 से 1919 तक इटली के विद्वान डॉ.एल वी टेसीटोरी के नेतृत्व में हुआ। यहां मिट्टी के बर्तन, देवी देवताओं की मूर्तियां, ताबेनुमा धातु के सिक्के आदि मिले। इस कार्य में ग्रामीणों ने भी सहयोग किया। इसके बाद वर्ष 1952 में डॉ. हन्ना रिड के नेतृत्व में भी खुदाई कार्य हुआ। रंगमहल से प्राप्त अनेक मूर्तियां राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली, राजकीय संग्रहालय जयपुर और बीकानेर में रखी हुई है।

पुरातत्व सर्वेक्षण ने बोर्ड लगाया और भूल गया

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से थेहड़ के पास संरक्षित स्मारक का बोर्ड लगा हुआ है। इसमें यहां भूमि के साथ किसी तरह की छेडख़ानी करने पर ऐतराज जताते हुए जुर्माना भी निर्धारित किया गया है। ग्रामीणों की माने तो गांव में थेहड की सुरक्षा के लिए भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की ओर से चौकीदार रखा हुआ है। लेकिन यहां कभी दिखाई नहीं दिया।

पूर्व में निकले थे सभ्यता के अवशेष

जानकारी के अनुसार पूर्व में गांव रंगमहल के थेहड़ में खुदाई व बरसाती मौसम में प्राचीन सभ्यता के अवशेष जमीन से बाहर आए थे। थेहड़ की सुरक्षा व सार संभाल नहीं होने की वजह से ग्रामीण यहां से बर्तन, मूर्तियां, ताबेनुमा सिक्के,चूडिय़ा आदि सामान घरों में ले गए। ग्रामीणों ने बताया कि प्राचीन थेहड़ की सार संभाल व सरंक्षण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से इसे ऐतिहासिक धरोहर के रूप में विकसित किया जाए तो इस क्षेत्र का विकास होगा तथा बड़ी संख्या में पर्यटक भी आएगे।
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तालाब भी है ऐतिहासिक

जानकारी के अनुसार यहां स्थित तालाब सिंधू घाटी सभ्यता के काल का है। जिसका तल ताम्र का बना हुआ तथा तीन और सवा फीट बाई एक फीट चौड़ी ईंटों से बना हुआ है। उत्तर दिशा में घग्घर नदी का बहाव होने कारण खुला रखा गया। यहां से करीब एक किलोमीटर दूरी पर लाखा बनजारा का विशाल शीशमहल हुआ करता था और उसके महल से इस तालाब तक सुरंग हुआ करती थीए जिसमें से होकर लाखा बनजारा के घोड़े यहां पानी पीने आते थे। अंग्रेजों द्वारा इस महल के लिए खुदाई करवाई गई मगर उन्हें कामयाबी नहीं मिली। इसी तरह तालाब की तह तक जाने का प्रयास किया गया, मगर तल तक नहीं पहुंचा जा सका। 52 सीढिय़ों तक खोजे जाने के प्रमाण मिलते हैं। आज भी इन सीढिय़ों व विशालकाय ईंटे जो सिंधू सभ्यता की कहानी कहती है। प्राचीन थेहड़ व तालाब की खुदाई कार्य करके इसे आकर्षक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए।
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पर्यटन स्थल पर विकसित करने की जरूरत

गांव रंगमहल के प्राचीन थेहड़ में मिली मूर्तियां, मिट्टी के बर्तनों,तांबे के सिक्कों व अन्य अवशेष मिले थे।पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से रंगमहल थेहड़ में दबी सभ्यता के प्रति रूचि नहीं दिखाई जा रही है। इस वजह से इसका सार संभाल भी नहीं हो रहा है। विभाग की ओर से थेहड़ की खुदाई की जाए तो ओर सभ्यता के बारे में ओर अधिक जानकारी मिल सकेगी। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इसे पुरातात्विक पर्यटन स्थल घोषित करें तो क्षेत्रवासियों को लाभ मिलेगा।- विजय सिंह ताखर, सरपंच, ग्राम पंचायत रंगमहल, सूरतगढ़

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