करीब एक दशक पहले शहर में मूसलाधार बरसात के बाद पानी निकासी के इंतजाम फेल हुए तो जिला प्रशासन और नगर परिषद ने हाथ खड़े कर दिए, ऐसे में भारतीय सेना ने यह मोचाज़् संभाला था।
इससे अब तक सबक नहीं मिला है। इलाके के जनप्रतिनिधियों और जिम्मेदार अधिकारियों ने शहर में पानी निकासी के लिए कोरी बातें की, इसका परिणाम यह रहा कि अब तक ड्रैनेज सिस्टम बनना तो दूर उसकी डीपीआर तक नहीं बन पाई है।
गंदे पानी की निकासी के लिए एसटीपी का निमाज़्ण हो चुका है लेकिन अभी तक शहर में सीवर लाइन डालने का काम चल रहा है। इस कारण वैकल्पिक व्यवस्थाओं से शहर को जूझना पड़ रहा है। हालांकि नौ साल पहले जनसहभागिता में ड्रैनेज सिस्टम बनाने के लिए एक दानदाता ने दस करोड़ रुपए की राशि नगर परिषद को सुपुदज़् की थी।
लेकिन निधाज़्रित समय में यह सिस्टम बना नहीं। इस दानदाता ने राजनीतिक एप्रोच के कारण नगर परिषद प्रशासन से दान की गई राशि दस करोड़ ब्याज सहित वापस वसूल ली थी। करीब सात साल पहले केन्द्र सरकार की अटल मिशन फॉर रेज्यूवेंशन एंड अरबन ट्रांसफोरमेशन (अमृत योजना) के तहत ड्रैनेज सिस्टम, वाटर पाकज़्, मल्टीस्टोरी पाकिज़्ग बनाने की चचाज़् हुई।
इस पर नगर परिषद और नगर विकास न्यास के अधिकारियों ने एक सप्ताह में ही संयुक्त रूप से करीब 55 करोड़ रुपए का अनुमानित बजट भी तय किया था लेकिन केन्द्र सरकार ने इस योजना के माध्यम से यह रुपए का बजट नहीं दिया।
नगर परिषद को एक करोड़ 79 लाख रुपए का लगा फटका वषज़् 2012 में कलक्ट्रेट में तत्कालीन कलक्टर की अध्यक्षता में ड्रैनेज सिस्टम को जनसहभागिता योजना के माध्यम से बनाने का प्रस्ताव तैयार किया गया। इस दौरान तब उद्योगपति बीडी जिन्दल ने पहले पांच करोड़ रुपए और फिर पांच करोड़ और कुल मिलाकर दस करोड़ रुपए देने की घोषणा की।
तब जिन्दल की शतज़् थी कि वषाज़् जल निकासी योजना का नाम उसके पिता सेठ मेघराज जिन्दल रखा जाएं। सेठ मेघराज जिन्दल वषाज़् जल निकासी योजना के लिए उद्योगपति जिन्दल ने 27 अप्रेल 2012 और 11 मई 2012 को पांच पांच करोड़ कुल दस करोड़ के चेक नगर परिषद को दिए। जल निकासी योजना नहीं बनने पर दानदाता को नगर परिषद प्रशासन ने 22 नवम्बर 2016 को 11 करोड़ 79 लाख 32 हजार 146 रुपए की राशि वापस लौट दी।
इसमें दस करोड़ मूल राशि और 1 करोड़ 79 लाख 32 हजार 146 रुपए ब्याज राशि शामिल थी।
इस बीच जिला कलक्टर जाकिर हुसैन का कहना है कि इस शहर में बरसाती पानी निकासी के लिए ड्रैनेज प्रोजेक्ट पर कभी सोचा तक नही गया है। जैसे जैसे शहर बढ़ रहा है तो ड्रैनेज प्रोजेक्ट की जरूरत पडऩे लगी है।
इस संबंध में जल्द ही डीपीआर बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी ताकि मेरे कायज़्काल में यह तो तय हो जाएं कि ड्रैनेज सिस्टम पर कितना खचज़् और समय लगेगा। इस डीपीआर बनने से सरकार से बजट मांगा जा सकता है।
इधर, नगर परिषद सभापति करुणा चांडक का मानना है कि शहर के नालों का लेवल सही नहीं है जैसा चाहा वैसा बना दिया गया। इस कारण पानी निकासी की समस्या रहती है।
ड्रैनेज सिस्टम समय की जरुरत है। सीवरेज प्रोजेक्ट शुरू होगा तब तक पानी को लिंक चैनल में डालने की व्यवस्था की गई है। डीएलबी ने नगर परिषद का सहयोग नहीं किया है। पुरानी आबादी में एसटीपी का निमाज़्ण अब तक नहीं हो पाया है, इस कारण वहां जल भराव की स्थिति अधिक रहती है।