श्रीकृष्ण मंदिर सेवा समिति के अध्यक्ष लेखराम सहारण व गोशाला सचिव सुरेन्द्र कुमार ने बताया कि आजादी से पहले सन 1940 को गांव फकीरवाली से भागूराम खोथ ने यहां आकर गांव बसाया था। जिनके नाम से ही गांव का नाम खोथांवाली पड़ा। अक्टूबर माह में शरद पूर्णिमा के दिन ही यहां भागूराम खोथ का आना हुआ था। इसके बाद गांव के लोग अक्टूबर माह में शरद पूर्णिमा को ही गांव का हर साल स्थापना दिवस मनाते हैं। पहले यहां कुछ ही परिवार आए थे। धीरे-धीरे गांव में करीब एक हजार घर हो गए।
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ऐसे मनाते हैं स्थापना दिवस
शरद पूर्णिमा के दिन में गांव के सभी लोग मंदिर के परिसर में एकत्रित होते हैं और वहां दरी बिछाई जाती है। जहां जमीन पर सभी लोग बैठ जाते हैं। जबकि प्रमुख लोगों व बुजुर्गों के लिए कुर्सियां लगती हैं। इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए सफेद कपड़े पहनकर आना जरूरी है। जहां सुंदरकाण्ड के पाठ, गायत्री मंत्र का जाप, हनुमानजी के भजन सुनाए जाते हैं। वहीं लोगों को अपनी कोई समस्या होती है तो वे ग्रामीणों के समक्ष रखते हैं। इसके अलावा गांव के शिक्षक बच्चों की पढ़ाई, स्कूल की समस्या आदि की बात करते हैं। कार्यक्रम में बच्चों व महिलाएं भी शामिल होती हैं।
नशा मुक्ति पर देते हैं शिक्षा
गांव के प्रमुख लोग व शिक्षक इस कार्यक्रम के दौरान मौजूद लोगों को नशे से दूर रहने व गांव में नशा नहीं आने देने शपथ दिलाते हैं और नशे के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी दी जाती है। वहीं गांव के विकास के लिए प्रमुख लोग अपनी अपनी राय रखते हैं। गांव की साफ-सफाई, विद्यालय व सुविधाओं पर चर्चा की जाती है। इसके अलावा गांव के बुजुर्ग बच्चों को गांव के स्थापना दिवस मनाने व सादगी पूर्ण जीवन जीने की शिक्षा देते हैं।
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सादगी पूर्ण मनाया जाता है दिवस
गांव का स्थापना दिवस प्रभु के भजनों के साथ सादगी पूर्वक मनाया जाता है। जहां भगवान के भजन चलते रहते हैं। वहीं लोग भी भजन गाते हैं। गायत्री मंत्रोच्चार भी किया जाता है। इसके बाद गांव के प्रमुख लोगों को संबोधित करते हैं। इस दौरान कोई धूम धडाका आदि नहीं किया जाता है। कार्यक्रम समाप्त होने पर प्रसाद वितरित किया जाता है।