परिजनों का कहना था कि जिस महिला का दिल्ली एयरपोर्ट लाया गया वह तो महाराष्ट्र की एक महिला निकली। ऐसे में परिजनों ने जम्मू कश्मीर सरकार के अधिकारी उदय पंडित और राजस्थान सरकार के प्रोटोकॉल ऑफिसर मनोज सिंह के समक्ष अपनी आपत्ति की। इससे अफसरों में खलबली मच गई। इस संबंध में श्रीनगर से संपर्क कर वहां अन्य शवों को देखा जा रहा है।
वधवा परिवार के नजदीकी और न्यू क्लॉथ मार्केट के पूर्व सचिव राजू छाबड़ा ने बताया कि श्रीनगर में अधिकारियों ने शवों की पहचान करके वीडियो कॉलिंग के माध्यम से परिजनों से संतुष्ट करने का आश्वासन दिया है। ऐसे में वधवा दंपती के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया अटक गई है। मोहनलाल वधवा का शव दिल्ली के एयरपोर्ट में ही रखवाया गया है। जबकि सीआई रहे सुशील खत्री का शव यहां श्रीगंगानगर पहुंच चुका है। खत्री का अंतिम संस्कार रविवार सुबह ग्यारह बजे पदमपुर रोड िस्थत कल्याण भूमि में किया जाएगा।
ज्ञात रहे कि अमरनाथ यात्रा में इन तीनों शवों को केन्द्र सरकार की ओर से दिल्ली मंगवाया गया। वहां से श्रीगंगानगर के लिए भिजवाने की व्यवस्था की गई थी। रिश्तेदारों ने खत्री का शव शनिवार देर रात दिल्ली लेकर श्रीगंगानगर पहुंचाया। उनके साथ खत्री की पत्नी देविका कोचर, बेटा निखिल और अन्य परिजन भी मौजूद थे।
इस बीच, श्रीगंगानगर में गौशाला मार्ग पर शनि मंदिर के पीछे जी ब्लॉक एरिया में आलीशन मकान में मानो खुशियों पर किसी की नजर लग गई हो। कपड़ा व्यापारी मोहनलाल वधवा और उनकी पत्नी सुनीता रानी की मौत के बाद इस घर में सन्नाटा पसरा हुआ था। जैसे ही कोई रिश्तेदार आता तो फिर से हादसे की बातें शुरू हो जाती।
वधवा का सगा भाई प्रेम वधवा बार बार अपने बड़े भाई और भाभी के एक साथ दुनिया से अलविदा से ज्यादा दुखी नजर आए। प्रेम वधवा हिम्मत करते हुए बोले कि मेरा तो हौसला थे भाईसाब। जिन्दादिल इंसान इस दुनिया में कम देखने को मिलते है। वहीं, वधवा के बड़े लडक़े अपूर्व का कहना था कि कोरोनाकाल के दो साल उसने पहली बार जीवन में अपने मम्मी-पापा के साथ अधिक समय बिताया। वह बैंगलोर और छोटा भाई हर्षित जयपुर में इंजीनियर की पढ़ाई करने के लिए चले गए थे। इसके बाद वह बैंगलोर की कंपनी में वहां और हर्षित गुडगांव में कंपनी ज्वाइन कर ली।
दोनों भाई अपने मम्मी पापा को ज्यादातर फोन पर ही बातें करते। त्यौहार या किसी कार्यक्रम में आना होता तो चंद दिनों के लिए आते। लेकिन कोरोनाकाल में दोनों भाईयों ने वर्क फ्रॉम होम किया तो श्रीगंगानगर लौट आए। अर्पित और उसकी पत्नी अब भी वर्क फ्रॉम होम कर रहे है जबकि छोटा भाई हर्षित गुडग़ांव में काम करता है। हर्षित सीआई रहे खत्री की बेटी निकिता के साथ चार मार्च को शादी की थी। बात करते करते विचलित हो उठे अपूर्व का कहना था कि कोरोनकाल में घर पर रहकर पहली बार यह अहसास हुआ कि उसके पापा अपने परिवारिक सदस्यों और समाज के लोगों के लिए कितना त्याग किया है।
यहां तक कि खुद का घर खरीदने की बजाय दोनों बेटों के कैरियर संवारने के लिए किराये के मकान में रहने को मजबूर रहे। करीब पांच महीने पहले ही इस मकान को बनाया था और सुखद जिन्दगी की पटरी पर आने का प्रयास शुरू किया कि अमरनाथ आपदा ने जीवन लील लिया।