दरअसल यह भूखंड डाक विभाग को आवंटित किया गया था। वहीं यूआईटी का दावा है कि यह भूखंड पहले डाक विभाग को दिया था लेकिन उन्होंने वहां निर्माण नहीं कराया तो यह भूखंड निरस्त कर न्यास ने बेचान करने के लिए निलामी लगाई थी।
करीब नौ साल पहले इस भूखंड की निलामी के दौरान बोलीदाताओं ने आपसी स्पर्धा होने के कारण रुपए जमा नहीं कराए तो यह बोली निरस्त कर दी गई। इस बीच डाक विभाग ने नगर विकास न्यास के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर कर इस भूखंड के बेचान प्रक्रिया पर रोक लगाने की गुहार की।
यह प्रकरण अब भी कोर्ट में विचाराधीन है। इधर, नगर परिषद ने पिछले दो दिनों से इस भूखंड में डाली जाने वाली गंदगी को साफ कराया और वहां चारों ओर लोहे की जाली लगाने की प्रक्रिया शुरू की तो नगर विकास न्यास प्रशासन ने शनिवार देर रात को वहां खुद की संपति के साइन बोर्ड लगा दिए।
इस पर नगर परिषद सभापति करुणा चांडक ने रविवार को वहां नगर परिषद की संपति का दावा करते हुए साइन बोर्ड लगवा दिए, इससे विवाद बढ़ गया। रविवार शाम को जिला कलक्टर जाकिर हुसैन ने बीच बचाव करते हुए नगर परिषद आयुक्त से जवाब मांगा कि यह भूखंड न्यास का है।
न्यास की संपति पर नगर परिषद ने बिना अनुमति वहां साइन बोर्ड कैसे लगवा दिए। इस पर नगर परिषद प्रशासन ने बोर्ड हटाने की बात कही है। नगर विकास न्यास प्रशासन ने वर्ष 1984 में डाक विभाग को दो भूखंड आवंटित किए थे।
हाउसिंग बोर्ड के सामने सुखाडि़यानगर में एक भूखंड पर डाक विभाग की ओर से सरकारी आवास का निर्माण करवाया गया जबकि दूसरे भूखंड को ऑफिस बनाने के लिए आरक्षित रख लिया। बजट नहीं आने के कारण डाक विभाग ने वर्ष 2005 में न्यास प्रशासन से इस भूखंड को आवासीय से कॉमर्शियल के रूप में अनुमति देने का आग्रह किया। लेकिन न्यास प्रशासन ने डाक विभाग का यह प्रस्ताव निरस्त कर दिया।
हालांकि इस भूखंड के बहाल करने के लिए डाक विभाग की ओर से पत्र व्यवहार भी किया गया था। यहां तक कि आवंटन निरस्त के खिलाफ कोर्ट में भी याचिका दायर की गई थी।
न्यास ने इस भूखंड को बोली में बेचने की प्रक्रिया भी अपनाई लेकिन बड़ी राशि की खरीददारी होने के कारण राशि जमा नहीं हो पाई तो यह निलामी अटक गई। इस बीच डाक विभाग ने यहां सिविल न्यायालय में न्यास के खिलाफ मामला दायर कर दिया। डाक विभाग का कहना है कि आवंटित होने के बावजूद न्यास प्रशासन ने यह भूखंड किस आधार पर बेचान करने की प्रक्रिया अपनाई।
अब भी यह प्रकरण कोर्ट मे विचाराधीन है। इस बीच वर्ष 2012 में न्यास प्रशासन ने इस भूखंड को बेचान करने के लिए न्यास परिसर में ही खुली लगाई। उत्तर प्रदेश से एक फर्म के दो लोगो ंको व्यापारी बताकर वहां पेश किया गया।
पहले व्यक्ति ने इस भूखंड की बोली 26 करोड रुपए की लगाई तो दूसरे व्यक्ति ने 70 करोड़ रुपए की बोली लगाकर सबको चौंका दिया था। न्यास प्रशासन ने इस व्यक्ति से 15 लाख रुपए की राशि भी जमा कराई थी।
नियमानुसार भूखंड की बोली लगाने वाले बोलीदाता को बोली राशि का 25 प्रतिशत हिस्सा जमा करवाना होता है। लेकिन बोलीदाता का कहना था कि यह बोली इतनी ऊंची जाएगी, यह पता नहीं था। इस कारण उसने पन्द्रह लाख रुपए जमा करवा कर शेष राशि चार दिन में जमा कराने का आश्वासन दिया। लेकिन वह नहीं आया। यहां तक कि उसके पते पर नोटिस भी जारी किए गए लेकिन उससे संपर्क नहीं हो पाया तो यह राशि न्यास प्रशासन ने जब्त कर ली।
नगर परिषद सभापति करुणा चांडक और उनके पति अशोक चांडक ने रविवार सुबह इस भूखंड की चारदीवारी करने आए तब वहां यूआईटी का साइन बोर्ड देखा तो उसी समय नगर परिषद से भी संपति दावे का बोर्ड लगवा लिया। चांडक का कहना था कि इस भूखंड पर पिछले ३७ सालों से लोग गंदगी डाल रहे है।
वहां सफाई कराने की बजाय कचरा प्वाइंट बना दिया गया है। तब यूआईटी कहां थी। उनका यह भी कहना था कि जवाहरनगर एरिया न्यास ने वर्ष 2014 में नगर परिषद को सुपुर्द कर दिया है तो इस भूखंड के स्वामित्व का अधिकार भी नगर परिषद को सौंपा जाना चाहिए।
यह भूखंड किसका है, इस संबंध में दस्तावेज तो दिखाएं। चांडक के अनुसार यह भूखंड यूआईटी का नहीं है लेकिन जानबूझकर इसे राजनीतिक रंग दिया जा रहा है।यूआईटी सचिव डा.़हरिमिता ने नगर परिषद आयुक्त को नोटिस थमाया है। इसमें बताया गया है कि यह भूखंड न्यास का है।
उन्होंने राज्य सरकार की ओर से वर्ष 2013 के नियमों का हवाला देते हुए है लिखा है कि हस्तान्तरित योजनाओं में रिक्त भूखंड का विक्रय संबंधित न्यास द्वारा किया जाएगा। इस भूखंड का प्रकरण कोर्ट में विचाराधीन है। इय भूखंड पर नगर परिषद की ओर से स्वामित्व का बोर्ड लगाया है, तुरंत प्रभाव से हटा लेना चाहिए।