गुरजोत ने इस अनुभव पर कहा, “सीनियर टीम में माहौल बहुत अच्छा है, सभी सीनियर बड़े भाइयों की तरह हैं। एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी में मेरा डेब्यू एक स्वप्निल अनुभव था, मैं चीन के खिलाफ खेलने के लिए उत्साहित था। मुझे लगा कि मैं अपने डेब्यू मैच में गोल करूंगा लेकिन भले ही मैं ऐसा नहीं कर सका लेकिन मैंने सर्वश्रेष्ठ दिया।
खेल से पहले कप्तान हरमनप्रीत सिंह ने मुझे आश्वस्त किया था कि ज्यादा सोचने या डरने की जरूरत नहीं है। मुझे बस वैसा ही खेलना है जैसा मैं आमतौर पर शिविर में खेलता हूं।” गुरजोत पंजाब के एक छोटे से गांव हुसैनाबाद से हैं। उनके पिता पास के एक गांव में दूध बेचते और उनकी मां हाउसवाइफ हैं, जबकि उनकी बहनें पढ़ाई कर रही हैं।
हॉकी खेलने के नाम पर स्कूल में मिली आजादी
बचपन में गुरजोत बहुत शरारती थे। जब वह 6 साल के थे, तब वे एक जानलेवा साइकिल दुर्घटना का शिकार हुए थे। इस दुर्घटना में उनके सिर के पिछले हिस्से में सात टांके लगे थे। उन्होंने बताया, “दुर्घटना के बाद, कुछ वर्षों तक मुझे थोड़ी कमजोरी रही, लेकिन जब मैं 10 वर्ष का हुआ, तो मैं पूरी तरह से ठीक हो गया और पास के एक सरकारी स्कूल में पढ़ने लगा। स्कूल में, मैंने देखा कि हॉकी खेलने वाले बच्चों को थोड़ी अधिक स्वतंत्रता मिलती थी। वे कक्षा में देर से आते थे और अभ्यास के लिए थोड़ा जल्दी चले जाते थे, इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न इस खेल में अपना हाथ आजमाया जाए।” 2020 तक, गुरजोत को अपने पिता का घर खर्च में हाथ बटाने के लिए एक फुटवियर फैक्ट्री में काम करना पड़ा। वह सुबह अभ्यास करता और रात में काम करता। इन तमाम चुनौतियों को पार करते हुए उन्होंने यहां तक का सफर तय किया।