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छतरपुर

akshaya tritiya 2018 : आखातीज पर इस वजह से मिलता है अक्षय फल, यह चीजें दान करने से आती है समृद्धि

धार्मिक स्थानों पर होंगे विवाह समारोह, घरों में होगा गुड्डा-गुडिय़ों का विवाह

छतरपुरApr 18, 2018 / 02:28 am

Neeraj soni

what to do on akshaya tritiya

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छतरपुर. बुंदेलखंड में अक्षय तृतीया या आखातीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। बुंदेलखंड में इस दिन विवाह समारोह के साथ सतुआ और छाते का दान और कन्यादान का विशेष महत्व होता है। बुधवार को जिला मुख्यालय सहित जटाशंकर, कुंडेश्वर, मतंगेश्वर सहित प्रमुख तीर्थ स्थलों पर विवाह कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। नगर पालिका परिसर में ही एक साथ 450 से ज्यादा जोड़ों की शादियों का कार्यक्रम रखा गया है।

अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीदारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीदारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उद्घाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। पुराणों में लिखा है कि इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दानए अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहां तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है।

अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समुद्र या गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शांत चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है। नैवेद्य में जौ या गेहूँ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात फल, फूल, बर्तन तथा वस्त्र आदि दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण को भोजन करवाना भी कल्याणकारी समझा जाता है। बुंदेलखंड में मान्यता है कि इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए तथा नए वस्त्र और आभूषण पहनने चाहिए। गौ, भूमि, स्वर्ण पात्र इत्यादि का दान भी इस दिन किया जाता है।

गर्मियों के हिसाब से होता है वस्तुओं का दान
यह तिथि वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घड़े, कुल्हड़, सकोरे, पंखे, खड़ाऊं, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है। इस दान के पीछे यह मान्यता है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएं स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होंगी। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिए। बुंदेलखंड में अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक बड़ी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है। जिसमें कन्याएं अपने भाई पिता तथा गांव-घर और कुटुम्ब के लोगों को शगुन बांटती हैं और गीत गाती हैं। वृक्ष के नीचे जाकर गुड्डे-गुडिय़ों की प्रतीकात्मक शादी करती हैं। इस दिन वर्षा की कामना की जाती है, लड़कियां झुंड बनाकर घर-घर जाकर शगुन गीत गाती हैं और लड़के पतंग उड़ाते हैं। इस दिन से शादी-ब्याह करने की शुरुआत हो जाती है। बड़े-बुजुर्ग अपने पुत्र-पुत्रियों के लगन का मांगलिक कार्य आरंभ कर देते हैं। अनेक स्थानों पर छोटे बच्चे भी पूरी रीति-रिवाज के साथ अपने गुड्डे-गुडिय़ों का विवाह रचाते हैं।

इस प्रकार गांवों में बच्चे सामाजिक कार्य व्यवहारों को स्वयं सीखते व आत्मसात करते हैं। कई जगह तो परिवार के साथ-साथ पूरा का पूरा गांव भी बच्चों के द्वारा रचे गए वैवाहिक कार्यक्रमों में सम्मिलित हो जाता है। इसलिए कहा जा सकता है कि अक्षय तृतीया सामाजिक व सांस्कृतिक शिक्षा का अनूठा त्योहार है। कृषक समुदाय में इस दिन एकत्रित होकर आने वाले वर्ष के आगमन, कृषि पैदावार आदि के शगुन देखते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो शगुन किसानों को मिलते हैं, वे शत-प्रतिशत सत्य होते हैं।

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