पहुंच जाते थे आस-पास के लोग
मेल मिलाप व भाईचारे से भरी दुनिया
जी रही थी गली में।
लेकिन यहां शहर की दूर बसी कॉलोनी के
आलीशान मकानों में रह रहे लोग
परिचित नहीं एक दूसरे से
बने रहते है अनजान
घर की चार दीवारी में रहते है बंद
जानता नहीं यहां कौन शर्मा जी कौन वर्मा जी
थोड़ा भी मेल मिलाप नहीं है लोगों में
सब जीरहे स्वांत सुखाय वाला
आत्म केन्द्रित जीवन
यहां बच्चे दिखलाई नहीं देते खेलते
टीवी व स्मार्ट फोन से जुड़ी है उनकी दुनिया
बदली हुई है उनकी जीवन शैली
घुटा-घुटा था यहां का आधुनिक जीवन
चुप्पी साधे जी रहे है यहां के लोग।
आज भी बहुत याद आता है
पुराने शहर का छोड़ा हुआ
झरोखे वाला मकान
जहां से नजर आती थी
लोगों में अपने पन की दुनिया।