अफसर एसी में, यहां लू के थपेड़ों के बीच एक किमी दूर पत्थरों से रिस रहे पानी से प्यास बुझाने को मजबूर आदिवासी परिवार
– 50 साल से झरने से पानी भरने को मजबूर नया गांव के 80 आदिवासी परिवार, चेंबरों में बैठकर लिखी जाती हैं विकास की इबारत, हकीकत से कोसों दूर हैं अफसर
– ग्रामीण बोले: कई बार पानी में कीड़े भी पड़ जाते हैं, मजबूरन झानकर पीते हैं पानी
– गर्मी में पेयजल की जमीनी हकीकत देखने आए पीएचई के प्रमुख सचिव पी. नरहरि को ऐसे गांवों में ले गए अफसर, जहां पानी की किल्लत न दिखे
मुरैना. जिला मुख्यालय पर अफसर एसी चेंबरों में बैठकर विकास की इबारत लिख रहे हैं और उस इबारत को शासन को भेजकर बाहबाही लूट रहे हैं लेकिन जमीनी हकीकत से अधिकारी कोसों दूर हैं। देश आजादी का भले ही अमृत महोत्सव मना रहा है लेकिन मुरैना जिले के ग्रामीण अंचल के हालात आज भी आजादी के पूर्व के नजर आते हैं। जिला मुख्यालय से 75 किमी दूर कैलारस जनपद पंचायत के आदिवासी बाहुल्य नयागांव सहराना के 50 आदिवासी परिवार आज भी पत्थरों के बीच से रिस रहे पानी से अपनी प्यास बुझा रहे हैं। वह भी भीषण गर्मी 46 डिग्री तापमान में आदिवासी परिवार की महिला व बच्चे एक कि मी दूर पत्थरों के बीच निकल रहे झरने से पानी भरकर लाने को मजबूर हैं। यहां आदिवासी परिवारों के बीच एक भी जलस्रोत नहीं हैं, एक हैडपंप हैं, वह भी सूखा पड़ा है। यग्रामीणों का कहना हैं कि कई बार झरने के पानी में कीड़े भी पड़ जाते हैं मजबूरन झान कर पीना पड़ता है। शासन ने गांव- गांव पेयजल व्यवस्था सुदृढ़ करने नल जल योजना पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा दिया है और पीएचई विभाग भी योजना के नाम पर कागजी घोड़े दौड़ा रहे हैं लेकिन बावजूद उसके आदिवासी बाहुल्य गांवों की पेयजल व्यवस्था आज भी बदतर है। नया गांव सहराना के पुरुष ज्यादातर मजदूरी करने बाहर गए हैं, महिला व बच्चे गांव से एक किमी दूर स्थित सिद्ध बाबा मंदिर के पास स्थित पत्थरों से रिस रहे पानी से अपनी प्यास बुझा रहे हैं। प्रशासन पानी को लेकर बड़े- बड़े दावे कर रहा है। यहां तक कलेक्टर ने अभी हाल ही में निर्देश जारी किए थे कि जिन गांवों में जल स्रोत नहीं हैं, वहां हर हाल में पेयजल परिवहन किया जाए लेकिन नयागांव में अभी तक पेयजल परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं हो सकी है।