देश की आजादी से पहले जिन्ना, पंडित नेहरू तथा अन्य सदस्य देश के बंटवारे पर विचार-विमर्श करते हुए
आजाद देश में पहली बार पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लहराया था तिरंगा, पूरा देश इसे देखने और सुनने के लिए मौजूद था
लेकिन आजादी मिलने की खुशी बंटवारे के दुख में खो गई। भारत और पाकिस्तान में रहने वाले एक करोड़ से भी अधिक लोगों को दूसरे देश जाने के लिए अपना घर-बार छोड़ना पड़ा
इसके साथ ही बर्बरता और हिंसा का नग्न नाच शुरू हुआ जिसमें दोनों देशों के 40 लाख से भी अधिक नागरिक मारे गए
सड़क पर जहां जाएं वहां लाशों का मिलना आम हो गया था। मंदिर-मस्जिद तोड़े जा रहे थे
लोग सब कुछ छोड़कर चल पड़े एक अनजान जगह पर जहां न कोई अपना था और न कोई पराया, सब एक दूसरे के गम में शामिल थे
कुछ लोगों ने सड़क के जरिए बैलगाड़ी से जाना चुना तो कुछ ने ट्रेन से
ट्रेनों में पांव रखने की भी जगह नहीं होती थी। ट्रेन की खिड़की, दरवाजे, छतें तक सब पर लोग सवार रहते थे। बस सबकी एक ही चिंता रहती थी कि किस तरह खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित बचाया जाए।