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सोनभद्र उत्तर प्रदेश का सबसे अधिक वनों वाला जिला है, जहां की एक बड़ी आबादी वनवासी और आदिवासी है। ज्यादातर इनका जीवन और रोजी-रोटी वनों और वनोपज व जड़ी-बूटियों (Hearbs) से ही चलती है। यहां के आदिवासी और वनवासी वनोपज इकट्ठा कर उनसे उत्पाद और दूसरी चीजें बनाकर स्थानीय बाजार में बेचते हैं। इनके उत्पाद बेहद सस्ते औषधीय गुणों वाले और फायदेमंद होते हैं। बावजूद स्थानीय बाजारों में उन्हें इसका वो दाम नहीं मिल पाता है। अब यहां के वनोपज व उत्पादों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान और सही मूल्य दिलाने के लिये राष्ट्रीय आजीविका मिशन आगे आया है। इससे न सिर्फ यहां के उत्पाद पूरे देश में बिकेंगे बल्कि इससे स्थनीय स्तर पर खासतौर से आदिवासी और वनवासी लोगों के लिये रोजगार के मौके बढ़ेगे। यही नहीं आजीविका मिशन से जुड़ी महिलाओं द्वारा तैयार झाड़ू, मक्का, तिल, हल्दी व मिर्च पाउडर और मूंगफली आदि भी बाहर भेजी जाएगी।
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ऑर्डर मिलने से गदगद हैं स्थानीय महिलाएं
स्थानीय उत्पाद बाहर भेजे जाने के लिये ऑर्डर मिलने के बाद मिशन से जुड़ी महिलाएं बेहद खुश हैं और ऑर्डर पूरा करने में जी जान से जुटी हैं। असनहर गांव की जय मां दुर्गा स्वयं सहायता समूह की ब्लाॅक मिशन प्रबंधक मिथिलेश पाण्डेय के मुताबिक एक क्विंटल मक्का, 50-50 किलो तिल और मूंगफली व 200 झाड़ू के साथ वनोपज भेजने के ऑर्डर मिला है जिस पर काम जारी है। लखनऊ और उत्तराखंड भेजने के लिये असनहर गांव की जय मां दुर्गा स्वयं सहायता समूह की महिलाएं तेजी से काम कर रही हैं। उन्होंने पैकिंग का काम शुरू कर दिया है।
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वनोपज इकट्ठा करने की जिम्मेदारी समूहों पर
आजीविका मिशन से जुड़ी महिलाओं द्वारा निर्मित समाग्री एक कंपनी के जरिये भेजी जाएगी। यही कंपनी सोनभद्र के वनोपज भी बाहर ले जाएगी। इसके लिये वनोपज इकट्ठा करने की जिम्मेदारी महिला समूहों को दी गई है। वन निगम के सेक्शन अधिकारी डीपी यादव के मुताबिक बभनी ब्लाॅक क्षेत्र से 15 समूहों का चयन किया गया है। हर्रा, बहेरा, आंवला का चूर्ण यहां से भेजा जाएगा। उन्होंने बताया कि इसका लाभ समूह की महिलाओं को मिलेगा।
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क्या है चूर्ण की खासियत
सोनभद्र के हर्रा, बहेरा और आंवला चूर्ण हाजमा दुरुस्त (Aayurvedic Churna) करने के लिये बेहद मुफीद है। तीनों ऐसे गुणों से परिपूर्ण होते हैं जो पेट के लिये लाभकारी हैं। तीनों को मिलाकर इसका औषधी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। जिला अस्पताल के आयूष चिकित्सक डाॅ. विनाेद कुमार बताते हैं कि यह हृदयरोग, हाई ब्लडप्रेशर, शूगर, नेत्ररोग व पेट के विकार को खत्म करता है। इसमें मिलाई जाने वाली हरण जिसे आम भाषा में हर्रै भी कहा जाता है इसका काम विरेचन है तो आंवला प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इसी तरह बहेरा मल बाध्यता को दूर करता है। इन्हीं तीनों के मेल को त्रिफला (Triphala Churna) कहा जाता है।
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सोनभद्र में औषधीय पौधों की भरमार
वन और खनिज सम्पदा से सम्पन्न सोनभद्र के जंगलों में एक से बढ़कर एक औषधीय गुणों वाले पौधों और वनस्पतियों की भरमार है। यहां के आदिवासी और वनवासी इनसे भली भांति परिचित हैं। इनके स्थानीय उत्पाद और जीवन शैली में इनका उपयोग देखने को मिलता है। क्षेत्र में सबसे ज्यादा औषधीय गुण वाले पौधे हैं। यहां जंगल अधिक है। इस लिए हरै, बहेरा और आंवला भी काफी मात्रा में है।