यह मोरवा Morwa से होने वाले विस्थापितों को आगाह करते हुए उल्लेख करता है कि इसमें 50 हजार लोग बेघर होंगे। उन्हें डिसोल्यूशन उजाडऩे का काम और जिम्मेदारी तो एनसीएल ने अपने कंधों पर उठा रखी है लेकिन विस्थापन के बाद विस्थापितों को स्वयं से बसने की सलाह दी गई। हालांकि यह केवल सलाह नहीं क्योंकि प्रबंधन ने अभी तक की प्रक्रिया को देखकर तो ऐसा ही प्रतीत होता है।
कानून के जानकार इस स्कीम सेल्फ रिसेटेलमेंट को भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में खोजने का प्रयास कर रहे हैं। विस्थापन मंच के पदाधिकारियों ने बताया कि स्कीम में उल्लेख है कि एनसीएल जयंत के एमजीआर और रेल माध्यम से कोयला आपूर्ति तीन चार वर्षो में बंद हो जाएगी और राजकीय कोष में करीब 2430 करोड़ का योगदान प्रभावित हो जाएगा।
सर्वेक्षण में विलंब
मोरवा Morwa के सर्वेक्षण को लेकर भी एनसीएल मैनेजमेंट के अपने पास उपलब्ध टीम पर भरोसा न होने की वजह से ही सर्वेक्षण एवं नापी का कार्य प्राइवेट कंपनी की टीम से कराया जा रहा है। वह भी सही कार्य का आदेश प्राप्त न होने और समय पर भुगतान न होने के कारण कार्य में नियमित नहीं रह पा रही है। यही कारण है कि एक जुलाई से 30 दिसंबर तक खत्म हो जाने वाले इस सर्वेक्षण के कार्य को जनवरी के शुरूआती दिनों तक आधे पर भी नहीं पहुंचाया जा सका है।
मोरवा आर्थिक आमदनी देने के मामले में सबसे आगे है। मोरवा रेलवे स्टेशन भी है। पुनर्वास की शर्तें
मोरवा के लोगों ने पुनर्वास के लिए एनसीएल के सामने कई शर्तें रखी हैं। विस्थापित परिवार के हर व्यक्ति को नौकरी जैसी कुल 24 शर्तें रखी गई हैं जिनमें मुख्य हैं—
- सेक्शन 91 के तहत मिलने वाली सभी जमीनें नगर निगम क्षेत्र में ही होनी चाहिए, क्योंकि मोरवा की जिन जमीनों का अधिग्रहण किया जा रहा है वे सभी नगर निगम में हैं।
- जो लोग नगर निगम क्षेत्र के बाहर जमीन लेने को तैयार हैं उन्हें नियमानुसार मुआवजा मिलना चाहिए।
- मोरवा ने पहले भी विस्थापन का दंश झेला है इसलिए जिस वार्ड का बाजार मूल्य सबसे अधिक है, उसी आधार पर पुनर्वास के इलाके का बाजार मूल्य तय होना चाहिए।
- विस्थापितों को कोल इंडिया लिमिटेड और चल रही पॉलिसी के अंतर्गत डिसेंडिंग ऑर्डर के तहत नौकरी दी जाए।