इसकी ख्याति का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि हर्ष पर्वत पर वर्ष 1834 में सार्जेन्ट डीन नामक यात्री आए। उन्होंने कोलकाता में हर्ष पर्वत पर पत्र वाचन किया तो लोग दंग रह गए। पर्वत पर आवागमन के लिए समाजसेवी दिवंगत बद्रीनारायण सोढाणी द्वारा अमरीकी संस्था कासा की सहायता से सडक़ निर्माण कराकर राह खुलवाई गई। हर्ष पर्वत पर जाने के लिए एक पैदल रास्ते (पगडंडी) का निर्माण वर्ष 1050 में तत्कालीन राजा ने कराया था।
विंड एनर्जी हब भी
हर्ष पर्वत पर पवन चक्कियां लगाई गई हैं। कई फीट ऊंचाई पर लगे पंखे वायु वेग से घूमकर विद्युत का उत्पादन करते हैं। वर्ष 2004 में 7.2 मेगावाट की पवन विद्युत परियोजना शुरू की। यहां पवन को ऊर्जा में परिवर्तित करने वाले टावर लगे हैं। यहां उत्पन्न होने वाली विद्युत ऊर्जा फिलहाल 132 केवी जीएसएस खूड को आपूर्ति की जाती है। जिसे विद्युत निगम विभिन्न गांव-ढाणियों में सप्लाई करता है।
तो निखर सकती है सूरत
-यहां रोप-वे शुरू हो तो पर्यटकों की संख्या में इजाफा हो सकता है। जनवरी 2015 में तत्कालीन वन राज्यमंत्री ने रोप वे के जरिए लालोलाव बालाजी मंदिर व हर्षनाथ मंदिर को जोडऩे की घोषणा की थी। ढाई किमी रोप वे प्रोजेक्ट पर 10 करोड़ रुपए खर्च होने थे। कोलकाता की एक फर्म को पीपीपी मोड पर यह काम दिया गया था।
-पर्यटन व वन विभाग में तालमेल के अभाव में इसके विकास की राह नहीं खुल पा रही है। पर्यटन विभाग की शेखावाटी सर्किट योजना के तहत इसे विकसित करना चाहिए। बीकानेर से जयपुर के बीच हर्ष पर्वत एकमात्र हिल स्टेशन है। यदि रोप-वे और ईको टूरिज्म प्रोजेक्ट पर काम हो तो बड़ा टूरिस्ट स्पॉट बन जाएगा।
-यहां आवागमन को लेकर सडक़ मार्ग खराब होने की वजह से काफी परेशानी आती है। प्रशासन को सडक़ मार्ग को ठीक करवाना चाहिए।
-स्थाई पुलिस चौकी होने से सुरक्षित पर्यटन स्थल विकसित होगा।
ये आंकड़े हर्ष देते हैं…
3100 फीट ऊं चाई है पर्वत की
1100 साल पुराना हर्षनाथ भैरव व पंचमुखी प्रतिमा वाला शिव मंदिर हैं यहां
1834 में विदेशी यात्री ने किया था हर्ष पर पत्र वाचन
7.2 मेगावाट से अधिक बिजली उत्पादन
02 लाख से ज्यादा पर्यटक आते हैं सालाना