ऐसे होता है व्यवस्थाओं का संचालन
स्कूलों में बस सहित अन्य सुविधाओं के नियमित संचालन के लिए एक कमेटी बनी हुई है। कई स्थानों पर नियमित रूप से कमेटी में शामिल भामाशाह सहयोग राशि देते है। कई गांवों में कमेटी सदस्य गांव के सहयोग से चन्दा एकत्रित करते है। जिन गांवों के स्कूलों में हालात बदले है वहां के पे्ररक शिक्षकों का भी बदलाव में बड़ा रोल रहा है, जिसका सभी ने प्रशंसा की है।
49 हजार का बढ़ा नामांकन
सरकारी स्कूलों में पत्रिका के नींव अभियान के बाद लगभग 49 हजार का नामांकन बढ़ा है। वहीं कई स्कूलों में प्रोजेक्टर से पढ़ाई व बच्चों के साथ शिक्षकों का डे्रस कोर्ड अनिवार्य कर दिया गया है। नवाचार करने वाले स्कूलों में गारिण्डा, लालासी, कूदन, तारपुरा, बाड़लवास, भूदोली, नेवटिया फतेहपुर, रोलसाहबसर, भढ़ाडर, पलासरा, रानोली, रूपगढ़, हमीरपुरा, बल्लूपुरा, बोसाना, सहित अन्य स्कूल शामिल हैं।
&जनसहभागिता के मामले में जुलाई माह तक सीकर प्रदेश में पहले पायदान पर है। यहां लगभग 500 से अधिक सरकारी स्कूलों में अभिभावक, ग्रामीण व शिक्षकों के सहयोग से बसों का संचालन किया जा रहा है। इस पहल को दूसरे गांवों के स्कूलों में मॉडल के तौर पर पेश किया जा रहा है। रोहिताश गोदारा, एडीपीसी रमसा
स्कूलों में बस संचालन के मामले में प्रदेश के अन्य जिले काफी पिछड़े हुए है। जयपुर, उदयपुर, कोटा, भीलवाड़ा व अजमेर सहित अन्य जिले टॉप 20 से नीचे के पायदान है। आखिरी पायदान पर बांसवाड़ा, डूंगरपुर व पाली सहित अन्य जिले हैं।