दरअसल, 4 सितंबर 1987 को राजस्थान के सीकर जिले के दिवराला गांव की रूप कंवर अपने पति माल सिंह की मृत्यु के बाद उनकी चिता पर जीवित जलकर सती हो गई। भारत में सती होने का यह आखिरी मामला था। इस भयावह घटना ने न सिर्फ राजस्थान बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था।
घटना के बाद गांव और आस-पास के इलाकों में रूप कंवर को सती के रूप में पूजनीय माना जाने लगा, और वहां पर सती का महिमामंडन होने लगा। इस महिमामंडन ने देशभर में सती प्रथा के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रियाएं पैदा की, जिसके चलते कई सामाजिक संगठनों, नारीवादी समूहों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इसका कड़ा विरोध किया।
4 सितंबर 1987 की वो दोपहर
4 सितंबर 1987 को दोपहर 1:30 बजे सीकर जिले के गांव दिवराला में 20 वर्षीय युवती रूप कंवर अपने पति माल सिंह शेखावत की चिता पर बैठकर अग्नि की भेंट चढ़ गई थी। जयपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर इस गांव में जब यह घटना हुई, उस समय किसी ने इस घटना को रोकने के बजाय रूप कंवर की जयघोष से आसमान गुंजा दिया।
दसवीं तक पढ़ी थी रूप कंवर
दसवीं तक पढ़ी रूप कंवर की शादी को 9-10 माह ही हुए थे कि उसके पति का पेट की बीमारी से देहांत हो गया। पारिवारिक लोगों के अनुसार यह फैसला खुद रूप कंवर का था और किसी ने उसे इसके लिए बाध्य नहीं किया। उसने खुद ही परिवार के बड़े बुजुर्गों के सामने अपना घूंघट उलट दिया और पति के साथ ही अपनी जीवन लीला समाप्त करने की घोषणा कर दी।
कब क्या हुआ?
4 सितंबर 1987: शाम 1:30 बजे रूप कंवर अपने पति के शव के साथ सती हुईं। 5 सितंबर 1987: पुलिस ने दिवराला गांव में शव को जब्त किया। 15 सितंबर 1987: राजस्थान सरकार ने घटना की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए। 18 सितंबर 1987: राज्य सरकार ने सती प्रथा को रोकने के लिए कानून लागू करने की घोषणा की। 19 सितंबर 1987: सती प्रथा के उकसाने वाले आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 और धारा 306 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।
माता का दर्जा देकर मनाया चुनरी महोत्सव
समाज के लोगों ने घटना के बाद सती माता का दर्जा दिया और उनकी स्मृति में छोटा से मंदिर भी बनाया। इसके बाद राजपूत समाज ने 16 सितंबर को दिवराला गांव में चिता स्थल पर चुनरी महोत्सव की घोषणा कर दी। यह देशभर में चर्चा का विषय बन गया। कई संगठन सती प्रथा का महिमामंडन बताते हुए इसके विरोध में उतरे। सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों ने इस समारोह को रोकने के लिए राजस्थान हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा के नाम चिट्ठी लिखी। जस्टिस वर्मा ने 15 सितंबर को चिट्ठी को ही जनहित याचिका मानकर समारोह पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट ने चुनरी महोत्सव को सती प्रथा का महिमामंडन माना। साथ ही सरकार को आदेश दिया कि यह समारोह किसी भी स्थिति में न हो। रोक के बावजूद दिवराला गांव में 15 सितंबर की रात से ही लोग जमा होने लगे। दस हजार की आबादी वाले गांव में बाहर से भी हजारों लोग चुनरी महोत्सव के लिए इकट्ठा हुए। हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद पुलिस गांव से दूर ही रही। लोगों ने तय समय सुबह 11 बजे से पहले ही सुबह 8 बजे चुनरी महोत्सव मना लिया। इस महोत्सव में कई पार्टियों के विधायक भी शामिल हुए थे।
पीड़िता का परिवार और आरोप
रूप कंवर की सती होने के बाद सती निवारण कानून का पहली बार बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हुआ, जिसमें पीड़िता के ससुराल वालों समेत कई स्थानीय नेताओं पर आरोप लगाए गए थे। सती निवारण कानून के अंतर्गत सती के समर्थन और उसके महिमामंडन को अपराध घोषित किया गया।
सरकार ने दर्ज कराया था केस
रूप कंवर की पहली बरसी के मौके पर 22 सितंबर 1988 को राजपूत समाज के लोगों ने दिवराला से अजीतगढ़ तक एक जुलूस निकाला था। घटना का महिमामंडन करने पर तत्कालीन सरकार ने 45 लोगों के खिलाफ केस दर्ज करवाया था। सीकर के तत्कालीन थोई थाने में 22 सितंबर 1988 को पुलिस ने मामला दर्ज किया था। जिसमें पुलिस ने कहा था कि कई लोग ट्रक में सवार होकर सत्संग भवन दिवराला से जुलूस निकालकर सीताराम जी मंदिर तक सती माता के जयकारे लगाते हुए गए थे। इन लोगों ने ट्रक पर सती माता की फोटो लगा रखी थी और यह लोग सती प्रथा की बैन होने के बावजूद सती का महिमामंडन कर रहे थे।
राज्य सरकार को लाना पड़ा था अध्यादेश
रूप कंवर सती कांड से राजस्थान की देशभर में आलोचना के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने गृह मंत्री गुलाब सिंह शक्तावत की अध्यक्षता में कमेटी गठित की। इसके बाद राज्य सरकार एक अक्टूबर 1987 को सती निवारण और उसके महिमामंडन को लेकर एक अध्यादेश लाई। अध्यादेश के तहत किसी विधवा को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सती होने के लिए उकसाने वालों को फांसी या उम्र कैद की सजा देने और ऐसे मामलों को महिमामंडित करने वालों को सात साल कैद और अधिकतम 30 हजार रुपए जुर्माना लगाने का प्रावधान रखा गया था।
आरोपियों को मिला संदेह का लाभ
घटना से जुड़े वकील ने बताया कि कोर्ट ने सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया हैं। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सती निवारण अधिनियम की धारा-5 में पुलिस ने सभी को आरोपी बनाया हैं। यह धारा कहती है कि आप सती प्रथा का महिमा मंडन नहीं कर सकते हैं। लेकिन इस धारा में आरोप साबित करने के लिए जरूरी है कि धारा-3 के तहत सती होने की कोई घटना हुई हो। वकील ने आगे जानकारी दी कि पुलिस ने पत्रावली पर सती होने की किसी भी तरह की घटना का कोई जिक्र नहीं किया। इसके अलावा मामला दर्ज करने वाले पुलिसकर्मियों और गवाहों ने भी इन आरोपियों की पहचान नहीं की। ऐसे में कोर्ट ने सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
इन आरोपियों को किया गया बरी
मामले में आरोपियों की ओर से पैरवी करने वाले अधिवक्ता अमनचैन सिंह शेखवात और संजीत सिंह चौहान ने बताया कि आज कोर्ट ने महेंद्र सिंह, श्रवण सिंह, निहाल सिंह, जितेंद्र सिंह, उदय सिंह, दशरथ सिंह, लक्ष्मण सिंह और भंवर सिंह को बरी कर दिया। वहीं, इस मामले में 25 आरोपियों को सन 2004 में बरी किया जा चुका है।