जोगेंद्रसिंह गौड़, सीकर. इनसे मिलिए ये हैं ग्राम पुरोहित का बास निवासी भींवाराम। जिनकी उम्र भले ही सौ साल हो जाने के कारण चेहरे पर झूरियां पड़ गई हैं। लेकिन, उम्र के इस पड़ाव में भी इनकी लाठी चलाने की कलाकारी देखकर हर कोई दंग रह जाता है। जी हां, स्वतंत्रता की लड़ाई लडऩे का दावा करने वाले भींवाराम अपने दोनों हाथों से एक साथ दो लाठियां घुमाकर आज भी दुश्मन को धूल चटाने का मादा रखते हैं। बुजुर्ग अवस्था में भी तेज गति के साथ एक साथ दो लाठियां हवा में लहराने की इनकी इस कला और जज्बे का यहां हर कोई कायल है। दो अक्टूबर 1917 को जन्मे भींवाराम का कहना है कि आजादी की लड़ाई में शामिल होने और देश से अंग्रेजों को खदेडऩे के लिए गांव इचड़की जिला फिरोजपुर (पंजाब) में इन्होंने लाठी चलाना सीखा। यहां अकाली सिक्खों के अखाड़े में पहलवानी भी सीखी। बतौर भींवाराम का कहना है कि 18 साल की उम्र में 1935 में स्वतंत्रता की लड़ाइयों में भाग लेना शुरू कर दिया था। आजादी के बाद जागीरदारी और सामाजिक कुरूतियों से लडऩा शुरू कर दिया। भींवाराम का कहना है कि आजादी के इतने सालों बाद भी अन्याय का बोलबाला है। ऐसे में अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए सीखी गई लाठी आज भी अपना काम कर रही है। लाठी को गति देने के लिए अलग से अभ्यास भी करना पड़ता है।
बिना स्कूल लिया आखर ज्ञान भींवाराम का खुद का मानना है कि जातिगत भेदभाव के कारण उसे स्कूल में प्रवेश नहीं मिला। लेकिन, बावजूद इसके उन्होंने अपने आप को अनपढ़ नहीं रहने दिया और निजी स्तर पर अक्षर ज्ञान लिया। धीरे-धीरे पुस्तक पढऩा और कविताएं लिखना सीख लिया।
भींवाराम के अनुसार योग आदि की क्रियाएं कर वे अपने शरीर को स्वस्थ रखने का प्रयास करते हैं। खुराक के तौर पर दोनों समय एक-दो चपाती और दूध का सेवन करता हूं। महीने में करीब डेढ़ किलो बिदाम भीगोकर खा लेता हूं।