scriptराजस्थान में है कृष्ण के इस अवतार का प्रसिद्ध मंदिर, एक बाण से तीनो लोको पर विजय प्राप्त का था वरदान, ये है यहां की मान्यता | Falgun Mela 2019 : Khatu Shyam Ji Temple History and Story in Hindi | Patrika News
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राजस्थान में है कृष्ण के इस अवतार का प्रसिद्ध मंदिर, एक बाण से तीनो लोको पर विजय प्राप्त का था वरदान, ये है यहां की मान्यता

राजस्थान में है कृष्ण के इस अवतार का प्रसिद्ध मंदिर, एक बाण से तीनो लोको पर विजय प्राप्त का था वरदान, ये है यहां की मान्यता

सीकरMar 18, 2019 / 03:46 pm

rohit sharma

Khatu Shyam ji

Khatu Shyam ji

सीकर।

राजस्थान इन दिनों पूरी तरह से श्याम रंग में रंगा हुआ है। मौका है राजस्थान के शेखावाटी में स्थित खाटू श्याम जी के फाल्गुन मेले (Falgun Mela 2019) का। पूरे देश से भगवान श्याम के जयकारों और भगवा निशानों के साथ लाखों भक्त खाटू वाले की धुन में आगे बढ़े जा रहे हैं। आइए आज आपको बताते हैं आखिर क्यों है खाटू श्याम जी की इतनी मान्यता और ग्यारस के दर्शन का इतना महत्व।
राजस्थान के सीकर जिले में प्रसिद्ध खाटू ग्राम है इसी कस्बे में बाबा श्याम का विश्व विख्यात मंदिर है। कलयुग के अवतार कहे जाने वाले खाटू श्याम जी (Khatu Shyam ji) की मान्यता बरसों से चली आ रही है। खाटू श्याम जी को भगवान कृष्ण का ही एक अवतार माना गया है। श्रद्धालुओं की बाबा श्याम के प्रति बहुत गहरी आस्था है जिसके चलते यहां हर साल लगने वाले फाल्गुन मेले में लाखों लोग दर्शन करने आते हैं। अतिशोक्ति नहीं होगी अगर खाटू मेले को राजस्थान का सबसे बड़ा मेला भी कहा जाए। मेले में राजस्थान के अलावा पूरे देश से यहां तक की विदेशी सैलानी भी खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए आते हैं।
ये है खाटू श्याम जी की पूरी मान्यता (Khatu Shyam Ji Story in Hindi)

खाटू श्याम बाबा के मंदिर की इन मान्यताओं के पीछे महाभारत काल की एक पौराणिक कथा है। द्वापर के अंतिम चरण में हस्तिनापुर में कौरव एवं पांडव राज्य करते थे। पाण्डवों के वनवासकाल में भीम का विवाह हिडिम्बा के साथ हुआ। उसके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम घटोत्कच रखा गया। पाण्डवों का राज्याभिषेक होने पर घटोत्कच का कामकटंककटा के साथ विवाह और उससे बर्बरीक का जन्म हुआ और बर्बरीक को भगवती जगदम्बा से अजेय होने का वरदान प्राप्त था।
जब महाभारत युद्ध की रणभेरी बजी, तब वीर बर्बरीक ने युद्ध देखने की इच्छा से कुरुक्षेत्र की ओर प्रस्थान किया। वे अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े। इस दौरान मार्ग में बर्बरीक की मुलाकात भगवान श्री कृष्ण से हुई। ब्राह्मण भेष धारण श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के बारे में जानने के लिए उन्हें रोका और यह जानकर उनकी हंसी उड़ायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में शामिल होने आए हैं।
कृष्ण की ये बात सुनकर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि उनका केवल एक बाण शत्रु सेना को परास्त करने के लिए काफी है और ऐसा करने के बाद बाण वापस तूणीर में ही आएगा। यदि तीनों बाणों को प्रयोग में लिया गया तो पूरे ब्रह्माण्ड का विनाश हो जाएगा। यह जानकर भगवान कृष्ण ने उन्हें चुनौती दी की इस वृक्ष के सभी पत्तों को वेधकर दिखलाओ। परीक्षा स्वरूप बर्बरीक ने पेड़ के प्रत्येक पत्ते को एक ही बाण से बींध दिया तथा श्री कृष्ण के पैर के नीचे वाले पत्ते को भी बींधकर वह बाण वापस तरकस में चला गया। इस दौरान उन्होंने (कृष्ण) पूछा कि वे (बर्बरीक) किस तरफ से युद्ध में शामिल होंगे। तो बर्बरीक ने कहा युद्ध में जो पक्ष निर्बल और हार रहा होगा वे उसी की तरफ से युद्ध में शामिल होंगे। श्री कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की निश्चित है और इस कारण अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम गलत पक्ष में चला जाएगा।
इसीलिए ब्राह्मणरूपी कृष्ण ने वीर बर्बरीक से दान की अभिलाषा व्यक्त की और उनसे शीश का दान मांगा। वीर बर्बरीक क्षण भर के लिए अचम्भित हुए, परन्तु अपने वचन से अडिग नहीं हो सकते थे। वीर बर्बरीक बोले एक साधारण ब्राह्मण इस तरह का दान नहीं मांग सकता है, अत: ब्राह्मण से अपने वास्तिवक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की। ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ गये।
श्री कृष्ण ने बर्बरीक को शीश दान मांगने का कारण समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पूर्व युद्धभूमि पूजन के लिए तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय के शीश की आहुति देनी होती है; इसलिए ऐसा करने के लिए वे विवश थे। इस दौरान बर्बरीक ने महाभारत युद्ध देखने कि इच्छा प्रकट की। श्री कृष्ण ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। श्री कृष्ण इस बलिदान से प्रसन्न होकर बर्बरीक को युद्ध में सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि से अलंकृत किया। श्री कृष्ण ने उस शीश को युद्ध अवलोकन के लिए, एक ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया था इस प्रकार वे शीश के दानी कहलाये।
श्रीकृष्ण ने दिया था खास वरदान, ये है मंदिर का इतिहास (Khatu Shyam Mandir History in Hindi)

श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर वीर बर्बरीक के शीश को वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजित होगा और तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष कि प्राप्ति होगी। स्वप्न दर्शनोंपरांत बाबा श्याम, खाटू धाम में स्थित श्याम कुण्ड से प्रकट होकर अपने कृष्ण विराट सालिग्राम श्री श्याम रूप में सम्वत 1777 में निर्मित वर्तमान खाटू श्याम जी मंदिर में भक्तों कि मनोकामनाएं पूर्ण कर रहे हैं।
एक बार खाटू नगर के राजा को सपने में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए कहा। इस दौरान उन्होंने खाटू धाम में मन्दिर का निर्माण कर कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया।
वहीं मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर 1720 ई. में मंदिर का पुनर्निर्माण कराया, तब से आज तक मंदिर की चमक यथावत है। मंदिर की मान्यता बाबा के अनेक मंदिरो में सर्वाधिक रही है।

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