दिनेश और कजली की शादी समाज के लिए दो संदेश छोड़ गई। पहला बहु और बेटी एक समान का और दूसरा शादी के नाम पर पैसों की बर्बादी रोकने का। ओमप्रकाश और उनके बड़े बेटे अरविंद माथुर का कहना था कि शादी का उद्देश्य कजली का घर फिर से बसाकर उसे खुशियों की सौगात देना था। जिसमें वे किसी तरह का कोई दिखावा या प्रचार नहीं चाहते। लिहाजा समारोह को शहर से सादगी से आयोजित किया गया।
कजली और दिनेश की शादी बेहद ही सादगी और सौहार्द के माहौल में हुई। रैवासा की जीणमाता धर्मशाला में हुई शादी में वर- वधु पक्ष के अलावा कजली के पीहर पक्ष के लोग भी शामिल हुए। जिनकी सबकी संख्या मिलाकर करीब 100 थी। शादी में निकासी से लेकर फेरे और विदाई तक की सारी रस्में निभाई गईं, लेकिन साजो- सज्जा या अन्य किसी चीज पर कोई फिजूलखर्ची नहीं की गई।
शादी के दौरान कजली की खुशी उसके चेहरे से साफ झलक रही थी। आंखों में नए सफर की खुशी और अपनों से बिछडऩे के आंसू साफ छलक रहे थे। शादी के बारे में पूछने पर कजली का यही कहना था कि जिस घर में बहु बनकर आई थी, वहां की बेटी बनकर वह एक नई जिंदगी की शुरुआत कर बेहद खुश है। हालांकि परिवार से बिछडऩे का गम भी है।
दिनेश और कजली के शादी तक पहुंचने की दास्तां भी अनूठी रही। दोनों रानोली में साथ काम करते हैं। साथ काम करते समय ही दिनेश को कजली के साथ हुए हादसे की जानकारी मिली। जिसे सुनकर ही दिनेश ने कजली से शादी का फैसला कर लिया। अविवाहित होने के बावजूद भी दिनेश ने कजली से शादी का प्रस्ताव उसके ससुराल पक्ष के सामने रखा, जिसमें कजली के पीहर पक्ष के साथ रजामंदी मिलते ही शादी की तारीख मुकम्मल कर दी गई।
शादी में यूं तो कोई फिजूलखर्ची नहीं थी। लेकिन, बेटी बनी बहु के लिए ओमप्रकाश के परिवार ने जरुरत का हर सामान कजली के साथ विदा किया। पहले शादी में मिली बाइक से लेकर अन्य समान तक भी सब कजली को साथ दिया गया है।